वाराणसी में निकली भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा, 50 हजार भक्तों ने बरसाए फूल,
शुरू हुआ लक्खा मेला
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Uttar Pradesh News: वाराणसी में 350 साल पुरानी परंपरा को निभाते हुए भगवान जगन्नाथ की भव्य डोली यात्रा निकाली गई। इस मौके पर शहर का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ डोली में सवार होकर अस्सी घाट से यात्रा पर निकले। इस यात्रा के साथ ही प्रसिद्ध लक्खा मेला भी शुरू हो गया। करीब 5 किलोमीटर लंबी इस यात्रा में भगवान के दर्शन के लिए लगभग 50 हजार श्रद्धालु पहुंचे और रास्ते भर पुष्पवर्षा करते रहे। डोली यात्रा अस्सी घाट से शुरू होकर लोलार्क कुंड, नवाबगंज, कश्मीरी गंज, शंकुलधारा होते हुए रथयात्रा चौराहे तक पहुंची।
शंकुलधारा पर भगवान जगन्नाथ की भव्य आरती
डोली यात्रा के दौरान चारों ओर जय कन्हैया लाल की और हर हर महादेव के जयघोष गूंजते रहे। शंकुलधारा पर भगवान की विशेष आरती की गई और यात्रा को वहीं कुछ देर के लिए रोका गया। शुक्रवार सुबह मंगला आरती और भोग के बाद भगवान के दर्शन-पूजन की शुरुआत होगी। इस पूरे आयोजन में डमरू दल ने डमरू बजाकर माहौल को और भक्तिमय बना दिया।
पुरी मंदिर विवाद बना बनारस मंदिर स्थापना की वजह
इस मंदिर और यात्रा से जुड़ा इतिहास भी बहुत रोचक है। 1765 के बाद पुरी मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रह्मचारी जी का वहां के राजा से विवाद हो गया, जिसके बाद वे काशी आ गए। वे पुरी से भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और सुभद्रा की प्रतिमा का प्रतिरूप साथ लाए थे। वे अस्सी घाट पर रहने लगे और वहीं भगवान की सेवा शुरू की। बाद में छत्तीसगढ़ के राजा व्यंकोजी भोंसले ने मंदिर बनवाने के लिए आर्थिक सहायता दी और तखतपुर महाल का रेवेन्यू मंदिर को दान कर दिया।
1790 में बना था बनारस का जगन्नाथ मंदिर
मंदिर का निर्माण 1790 में पूरा हुआ और तभी से यह परंपरा चलती आ रही है। 1857 की क्रांति के बाद मंदिर को मिलने वाला रेवेन्यू बंद हो गया। इसके बाद बेनीराम और उनके वंशजों ने इस मंदिर की सेवा का जिम्मा संभाला और आज भी वही परिवार मंदिर की देखरेख करता है। पुजारी ब्रह्मचारी जी की समाधि अस्सी घाट पर स्थित है और उनकी वस्तुओं की पूजा आज भी मंदिर में की जाती है। यह यात्रा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि बनारस की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, जिसे हर साल हजारों लोग श्रद्धा और आस्था से निभाते हैं।