उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली पर लगा ब्रेक,
अब जवाबदेही होगी तय
1 months ago
Written By: News Desk
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहां की कानून व्यवस्था हमेशा से ही एक चुनौती रही है। खासकर पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश की पुलिस व्यवस्था पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। कहीं निर्दोष लोगों की गिरफ्तारी, तो कहीं रसूखदारों के दबाव में की गई मनमानी पुलिस महकमा जनविश्वास की कसौटी पर बार-बार असफल साबित होता रहा है। ऐसे माहौल में कार्यवाहक डीजीपी के रूप में राजीव कृष्ण की नियुक्ति को एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।
बीते दौर की बदहाल व्यवस्था
राजीव कृष्ण के आने से पहले जो पुलिस प्रशासन काम कर रहा था, उसमें पुलिस की कार्यशैली को लेकर जनता में काफी असंतोष था। पुलिसकर्मियों को अनुशासन और जवाबदेही से ज्यादा राजनीतिक संरक्षण का भरोसा था। कानून की दृष्टि से सबके लिए समान व्यवहार की भावना लगभग समाप्त हो चुकी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश की पुलिस को देश की सबसे निरंकुश और गैरजवाबदेह पुलिस व्यवस्था के रूप में देखा जाने लगा।
पूर्व कार्यकाल में पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल
बता दें कि पूर्ववर्ती कार्यकाल में पुलिस की ढीली कार्रवाई और एकपक्षीय रवैये के कई उदाहरण सामने आए। मथुरा के गोवर्धन में एक युवक को सिर्फ इसलिये थाने में पीट-पीटकर मार डाला गया क्योंकि वह वकील था और पुलिस से सवाल कर रहा था। इसी तरह बरेली में एक पत्रकार को बिना किसी मुकदमे के महीनों जेल में रखा गया, केवल इसलिए क्योंकि उसने एक प्रभावशाली अफसर की आलोचना की थी। ये उदाहरण यह दिखाते हैं कि किस तरह पुलिस अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही थी और कोई जवाबदेही तय नहीं होती थी।
नए डीजीपी के कार्यभार के साथ आई नई लहर
राजीव कृष्ण ने कार्यवाहक डीजीपी के रूप में कमान संभालने के बाद जो सबसे अहम संदेश दिया, वह था कानून से बड़ा कोई नहीं। उनके शुरुआती फैसलों में जो सख्ती दिखाई दी, उसने यह संकेत दिया कि अब पुलिस महकमे के भीतर भी जवाबदेही तय की जाएगी और मनमानी पर रोक लगेगी।
तीन चर्चित मामलों में त्वरित कार्रवाई
रामबाबू तिवारी केस कौशांबी इस मामले में पुलिस ने रामबाबू तिवारी को गलत तरीके से फर्जी मामले में फंसाया और जेल भेज दिया। बाद में जब मामला उच्चाधिकारियों तक पहुंचा और मीडिया में उछला, तब जाकर जांच शुरू हुई। राजीव कृष्ण ने आते ही इस केस को प्राथमिकता में लिया और दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया।
जीतू निषाद प्रकरण कानपुर
कानपुर में जीतू निषाद नामक युवक को स्थानीय पुलिस ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। उस पर झूठा केस दर्ज किया गया और बगैर सबूत जेल में डाल दिया गया। बाद में जब सच्चाई सामने आई, तो इस मामले में सीधे उच्चस्तरीय जांच बैठाई गई और पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई।
मॉडल चाय वाली केस लखनऊ
यह मामला सामाजिक और राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील बन गया था। पुलिस ने बिना किसी ठोस वजह के एक महिला उद्यमी पर दबाव बनाया और उसे प्रताड़ित किया। इस केस में भी राजीव कृष्ण ने स्पष्ट निर्देश दिए कि दोषियों पर कार्रवाई हो और पीड़िता को न्याय मिले।
पुलिस की कार्यशैली में दिखा बदलाव
इन मामलों के बाद यह पहली बार देखने को मिला कि प्रदेश में पुलिसकर्मियों को खुली छूट नहीं दी जा रही। अगर वे कानून का उल्लंघन करते हैं, तो उन पर भी कार्रवाई हो रही है। यही वह बिंदु है जहां से परिवर्तन की लहर शुरू होती दिखाई दे रही है। पहले जिस तरह से दोषी पुलिसकर्मियों को राजनीतिक संरक्षण मिल जाया करता था, अब वैसा खुला समर्थन नहीं दिख रहा। कार्यवाहक डीजीपी का यह संदेश स्पष्ट है कि यदि पुलिस विभाग खुद को सुधारेगा नहीं, तो जनता का विश्वास और कानून की गरिमा दोनों ही नष्ट हो जाएंगे।
सिस्टम में गहराई से बदलाव की जरूरत
हालांकि यह बात भी सच है कि ये बदलाव अभी शुरुआती चरण में हैं। यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें सिस्टम को गहराई से साफ करने की आवश्यकता है। पुलिस थानों से लेकर विभागीय मुख्यालय तक में जवाबदेही की भावना पैदा करना कोई आसान काम नहीं है।
कुछ जरूरी सुधार इस प्रकार हैं
पुलिसकर्मियों की नियमित ट्रेनिंग और मानसिक परिक्षण।
राजनीतिक हस्तक्षेप को खत्म करना।
जवाबदेही तय करने के लिए थानों में सीसीटीवी निगरानी को अनिवार्य बनाना।
हर जिले में स्वतंत्र लोक शिकायत प्रकोष्ठ बनाना।