पाकिस्तान समर्थक पोस्ट करने वाले छात्र को हाईकोर्ट से ज़मानत,
कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बताया सर्वोपरि
14 days ago
Written By: STATE DESK
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए 18 वर्षीय छात्र रियाज को ज़मानत दे दी है, जिसे पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति केवल पाकिस्तान के समर्थन में कुछ कहता है, और उसमें भारत या किसी विशेष घटना का उल्लेख नहीं होता, तो वह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं माना जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने सुनाया।
पोस्ट में भारत विरोधी कुछ नहीं: कोर्ट
दरअसल, रियाज 25 मई से जेल में बंद था और उस पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर लिखे एक वाक्य, "चाहे जो हो जाय, सपोर्ट तो बस पाकिस्तान का करेंगे" के आधार पर मामला दर्ज किया गया था। रियाज की ओर से अदालत में यह दलील दी गई कि उसकी पोस्ट में न तो भारत का नाम था, न ही कोई प्रतीक (जैसे तिरंगा या राष्ट्रीय चिन्ह) जिससे देश की गरिमा को ठेस पहुंचे। वह केवल पाकिस्तान के प्रति अपना झुकाव दिखा रहा था, जिसे सीधे तौर पर आपराधिक नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि जब तक कोई पोस्ट भारत की संप्रभुता, एकता या अखंडता को चुनौती न दे, तब तक उसे दंडनीय अपराध नहीं ठहराया जा सकता।
संविधान में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले (इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य) का हवाला देते हुए कहा कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान का मूलभूत अधिकार है। सिर्फ एक विचार को प्रकट करने मात्र से किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, खासकर तब, जब वह विचार किसी हिंसा, विद्रोह या वैमनस्य को जन्म नहीं दे रहा हो।
धारा 152 के दुरुपयोग से बचने की सलाह
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि BNS की धारा 152 एक गंभीर और कठोर प्रावधान है, जिसे लागू करते समय अत्यधिक सतर्कता बरतनी चाहिए। केवल किसी सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर, जिसमें भारत विरोधी कोई स्पष्ट बात न हो, इस धारा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
जांच प्रक्रिया में खामी
कोर्ट ने यह भी पाया कि पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच (धारा 173(3) के तहत) किए बिना ही कार्रवाई की गई थी, जो कानून की प्रक्रिया का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त, रियाज की कम उम्र, उसका पहले से कोई आपराधिक इतिहास न होना, और चार्जशीट का दाखिल हो जाना, ये सभी तथ्य ज़मानत के पक्ष में गए।
सशर्त ज़मानत और चेतावनी
इन सभी तथ्यों के आधार पर अदालत ने रियाज को सशर्त ज़मानत देते हुए निर्देश दिया कि वह भविष्य में किसी भी प्रकार की आपत्तिजनक या उकसाने वाली पोस्ट से परहेज करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया पर अपनी अभिव्यक्ति को लेकर सतर्क रहना चाहिए और ऐसी कोई भी पोस्ट नहीं करनी चाहिए जो सामाजिक सौहार्द या कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकती हो।