दिल्ली फिर बनी गैस चेंबर, सरकार करेगी कृत्रिम बारिश,
जानिए कैसे क्लाउड सीडिंग से घटेगा प्रदूषण
3 days ago Written By: Aniket Prajapati
हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली की हवा जहरीली हो गई है। दिवाली के बाद एक बार फिर राजधानी धुएं की चादर में लिपट गई है। हालांकि शनिवार (25 अक्टूबर) को थोड़ा सुधार जरूर दर्ज किया गया केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक दिल्ली का औसत AQI 259 रहा, जो ‘खराब’ श्रेणी में आता है। लेकिन सांस लेने में मुश्किल, आंखों में जलन और गले में खराश जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। सर्दियां शुरू होते ही हवा की रफ्तार कम होने से प्रदूषण ज़मीन के पास फंस जाता है और महीनों तक राहत नहीं मिलती। इस बार दिल्ली सरकार ने एक नया कदम उठाया है, क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश कराने का फैसला।
क्या है क्लाउड सीडिंग? क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या पोटेशियम आयोडाइड जैसे साल्ट इंजेक्ट किए जाते हैं ताकि वे संघनन (कंडेनसेशन) को बढ़ाकर बारिश करा सकें। जब ये कण बादलों में फैलाए जाते हैं, तो उनके चारों ओर पानी की बूंदें या बर्फ के क्रिस्टल बनते हैं। जैसे-जैसे ये भारी होते हैं, बारिश गिरने लगती है। इस तकनीक को 1940 के दशक में विकसित किया गया था और अब यह सूखा कम करने, ओलावृष्टि रोकने, जंगल की आग बुझाने और प्रदूषण घटाने के लिए दुनियाभर में इस्तेमाल होती है।
दिल्ली में कब होगी कृत्रिम बारिश? दिल्ली सरकार अगले हफ्ते से कृत्रिम बारिश कराने जा रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बताया कि बुराड़ी इलाके में क्लाउड सीडिंग का सफल परीक्षण किया गया है। उन्होंने एक्स (Twitter) पर लिखा,
“दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी पूरी है। यह वायु प्रदूषण के खिलाफ हमारी बड़ी तकनीकी उपलब्धि होगी।” मौसम विभाग के अनुसार, 28 से 30 अक्टूबर के बीच बादल छाए रहेंगे। अगर परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो 29 अक्टूबर को दिल्ली में पहली कृत्रिम बारिश हो सकती है।
कितनी कारगर है क्लाउड सीडिंग? कृत्रिम बारिश से PM 2.5 और PM 10 जैसे सूक्ष्म कणों को धोया जा सकता है, जिससे हवा कुछ समय के लिए साफ होती है। लेकिन ओजोन या सल्फर डाइऑक्साइड जैसे गैसीय प्रदूषकों पर इसका असर नहीं पड़ता। विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग की सफलता बादलों की मौजूदगी और उनकी नमी पर निर्भर करती है। IIT दिल्ली के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि “इस तकनीक से होने वाली वर्षा में वृद्धि के प्रमाण अभी कमजोर और अस्थायी हैं।” बारिश से थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन एक-दो दिन में प्रदूषण फिर से लौट आता है।
पर्यावरणीय खतरे भी हैं क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स, जैसे सिल्वर आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड,अगर बार-बार इस्तेमाल हों, तो मिट्टी और जल स्रोतों में जमा होकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है, “अगर क्लाउड सीडिंग के दौरान अत्यधिक बारिश हो गई और बाढ़ जैसी स्थिति बन गई, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?” यानी यह तकनीक राहत के साथ-साथ जोखिम भी लेकर आती है।
कितने विमान करेंगे काम? दिल्ली-एनसीआर के इस प्रोजेक्ट में 5 संशोधित सेसना विमान शामिल होंगे। हर विमान लगभग 90 मिनट की उड़ान में 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग करेगा। यह प्रयोग फिलहाल उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के सबसे प्रदूषित हिस्सों में केंद्रित रहेगा। कुल मिलाकर इसका असर लगभग 100 किलोमीटर की रेंज तक महसूस किया जा सकेगा।
भारत में पहले भी हुआ प्रयोग भारत में यह तकनीक नई नहीं है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सूखे के समय क्लाउड सीडिंग की है। IITM पुणे की रिपोर्ट के अनुसार, इससे औसतन 15–20% तक वर्षा बढ़ने की संभावना रहती है। हालांकि, दिल्ली जैसे बड़े शहरी इलाकों में इसकी सफलता सीमित रही है क्योंकि यहां बादल और मौसम की स्थितियां बार-बार बदलती रहती हैं।
नतीजा क्या निकला? क्लाउड सीडिंग से दिल्ली को अस्थायी राहत तो मिल सकती है, लेकिन स्थायी समाधान नहीं। प्रदूषण पर काबू पाने के लिए वाहनों का उत्सर्जन, पराली जलाना और औद्योगिक धुआं जैसी जड़ समस्याओं पर नियंत्रण ज़रूरी है। कृत्रिम बारिश बस कुछ दिन की राहत दे सकती है, इलाज नहीं।