इंदौर का 150 साल पुराना रणजीत हनुमान मंदिर अब महाकाल लोक की तर्ज पर होगा विकसित,
6 करोड़ से अधिक की परियोजना शुरू
5 days ago
Written By: Aniket Prajapati
इंदौर का ऐतिहासिक रणजीत हनुमान मंदिर, जो 135–150 साल पुराना माना जाता है, अब आधुनिक और आकर्षक रूप में विकसित होने जा रहा है। यह परियोजना उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल लोक की तरह तैयार की जाएगी। मंदिर विकास पर 6 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने की उम्मीद है, जिसमें पत्थरों की लागत भी शामिल है। पूरा काम सिंहस्थ 2028 से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी इंदौर स्मार्ट सिटी को दी गई है और फंडिंग मंदिर के दान और फंड से की जाएगी। मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए यह बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
विकास कार्य की शुरुआत, कई नई सुविधाएँ तैयार होंगी
मंदिर में विकास कार्य शुरू हो चुका है, जिसमें सबसे पहले बाउंड्रीवॉल का निर्माण किया जा रहा है। यह पूरा काम चरणों में पूरा होगा। मंदिर परिसर में पुलिस चौकी, बेबी फीडिंग रूम, नया जूता स्टैंड और पेयजल जैसी सुविधाएँ जोड़ी जाएंगी। बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए विशेष इंतजाम किए जाएंगे। रणजीत लोक की छत पर सुंदर कशीदाकारी होगी और बाउंड्रीवॉल पर रंगीन लाइटिंग लगाई जाएगी। परिसर में सुंदरकांड का चित्रण भी बनाया जाएगा। मंदिर को 40 फीट आगे तक बढ़ाया जाएगा और नया मुख्य द्वार बनाया जाएगा। श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग स्थानों पर शेड भी बनाए जाएंगे।
इतिहास और मान्यता — क्यों कहलाते हैं ‘रणजीत’ हनुमान
मंदिर के पुजारी पं. दीपेश व्यास ने बताया कि यह मंदिर 135 साल से अधिक पुराना है और इंदौर ही नहीं, आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहाँ आते हैं। मंगलवार और शनिवार को यहाँ हजारों की संख्या में भीड़ रहती है। उन्होंने बताया कि जब सीता जी का हरण हुआ था, वानर सेना उन्हें खोजने निकली थी। हनुमान जी सीता जी का पता लगाकर लौटे और लंका दहन की जानकारी दी। तब भगवान राम ने कहा— "हनुमान, तुम रण जीतकर आए हो।" तभी से उन्हें रणजीत हनुमान कहा जाता है। इसी की स्मृति में पौष अष्टमी पर यात्रा निकाली जाती है।
मंदिर का निर्माण इतिहास — पाँच पीढ़ियों की सेवा
पुजारी पं. भोलाराम व्यास इस मंदिर के संस्थापक पुजारी थे। उनकी पाँचवीं पीढ़ी आज भी यहाँ पूजा-अर्चना कर रही है। पं. व्यास के अनुसार, शुरुआत में हनुमान जी लोहे की टीन के शेड में विराजमान थे। वर्ष 1960 में पक्का निर्माण किया गया और 1992 में आरसीसी की छत डाली गई। अब वर्षों बाद एक बड़े स्तर पर पुनर्विकास हो रहा है जो मंदिर का स्वरूप बदल देगा।