अब विदेशी नहीं, 'मेड इन कानपुर’ बचाएंगे पायलटों की जान…
जानें कैसे बना सुरक्षा कवच
20 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Indian Air Force Day: 8 अक्टूबर को भारतीय वायुसेना दिवस है, यह सिर्फ भारतीय सेना की ताकत का दिन नहीं, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता और देश के गौरव का प्रतीक भी है। इस साल की थीम सशक्त भारत, सक्षम सेना इस बदलाव को बखूबी दर्शाती है। देश की वायुसेना अब पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से लैस हो रही है और इस बदलाव के केंद्र में है कानपुर, जहां की पैराशूट फैक्ट्री, एयरफोर्स स्टेशन और IIT ने मिलकर वायुसेना को नई उड़ान दी है।
कानपुर की पैराशूट फैक्ट्री बनी भारत की तकनीकी रीढ़ कानपुर की ऑर्डिनेंस पैराशूट फैक्ट्री (OPF) भारतीय वायुसेना की सबसे अहम इकाइयों में से एक है। यह न सिर्फ भारत बल्कि पूरे एशिया की इकलौती फैक्ट्री है जो फाइटर जेट्स के लिए पैराशूट बनाती है। यहां से सुखोई-30, तेजस, मिग-21, मिग-29, मिराज-2000, हॉक और जागुआर जैसे विमानों के लिए पैराशूट तैयार किए जाते हैं। जब कोई विमान तेज रफ्तार से रनवे पर उतरता है, तो यह पैराशूट हवा के दबाव से उसकी स्पीड कम करता है और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करता है।
पायलटों के लिए जीवनरक्षक पैराशूट ओपीएफ केवल फाइटर विमानों के लिए नहीं, बल्कि पायलटों की सुरक्षा के लिए भी पैराशूट तैयार करती है। मिग-29 के लिए PSU-36, सुखोई-30 के लिए विशेष पायलट पैराशूट और तेजस एमके-1 के लिए एयरक्रू चेस्ट पैराशूट इसी फैक्ट्री में बनते हैं। यहां से भारी सामग्री और सैनिकों को दुर्गम इलाकों में उतारने के लिए भी हैवी ड्रॉप पैराशूट सिस्टम बनाए जाते हैं।
अमेरिका पर निर्भरता खत्म, अब स्वदेशी पैराशूट पहले भारत को ये पैराशूट अमेरिका से मंगाने पड़ते थे, लेकिन अब ओपीएफ ने डीआरडीओ की मदद से पूरी तरह स्वदेशी सिस्टम विकसित कर लिया है। तेजस के लिए बनाए गए इस पैराशूट में 80 किलो का ऑक्सीजन सिलेंडर लगा है, जिससे पायलट 45 मिनट तक हवा में सांस ले सकता है। इसमें मौजूद मल्टी कैनोपी पैराशूट सिस्टम (MCPS) 30,000 फीट की ऊंचाई से सटीक ड्रॉपिंग की क्षमता रखता है। इससे भारत ने न केवल आयात पर निर्भरता खत्म की, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया।
चकेरी एयरफोर्स स्टेशन: इतिहास का गौरव कानपुर का चकेरी एयरफोर्स स्टेशन भारतीय वायुसेना के गौरवशाली इतिहास की पहचान है। द्वितीय विश्व युद्ध में इसका इस्तेमाल मित्र राष्ट्रों ने किया था। 1949 में भारत का पहला जेट विमान ‘वैंपायर’ यहीं से सर्विस हुआ। 1965 के भारत-पाक युद्ध में इसी स्टेशन ने दुश्मनों को करारा जवाब दिया था। आज यह 1-बेस रिपेयर डिपो के रूप में काम करता है, जहां एएन-32 विमान की मरम्मत और रखरखाव किया जाता है।
IIT कानपुर बना देश का ड्रोन हब तकनीक के क्षेत्र में IIT कानपुर अब देश का ड्रोन हब बन चुका है। यहां विकसित ड्रोन वायुसेना और थलसेना दोनों की ताकत बढ़ा रहे हैं। फिलहाल भारतीय सेना 30 से अधिक ड्रोन का उपयोग निगरानी, राहत और आपूर्ति कार्यों में कर रही है। राज्य सरकार ने यहां सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ड्रोन टेक्नोलॉजी भी स्थापित किया है ताकि इस क्षेत्र में अनुसंधान को और बढ़ावा मिले।