मोहर्रम पर बड़े ताजिए की अनुमति न मिलने की आशंका पर हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका,
कहा– काल्पनिक आधार पर हस्तक्षेप नहीं
23 days ago
Written By: STATE DESK
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहर्रम के अवसर पर उत्तर प्रदेश के संभल जिले में 54 फीट लंबे ताजिए की अनुमति न मिलने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे केवल “काल्पनिक आशंका” करार दिया है। न्यायालय ने कहा कि, जब तक प्रशासन द्वारा कोई स्पष्ट रोक नहीं लगाई गई है, तब तक केवल अनुमान के आधार पर अदालत से हस्तक्षेप की मांग करना न्यायिक समय का दुरुपयोग है। इसी के साथ कोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।
इस बार अनुमति को लेकर आशंका
मिली जानकारी के मुताबिक, याचिका में याची ने कहा था कि, वह हर वर्ष मोहर्रम के अवसर पर परंपरागत रूप से बड़ा ताजिया निकालता है। इस वर्ष 6 जुलाई 2025 को भी वह 54 फीट लंबा और 15 फीट चौड़ा ताजिया निकालना चाहता है, लेकिन उसे आशंका है कि प्रशासन इस बार अनुमति नहीं देगा। याची ने यह भी तर्क दिया कि पिछले वर्ष उसे इसी प्रकार का ताजिया निकालने की अनुमति मिली थी।
कोई लिखित रोक नहीं, कोर्ट ने नहीं माना तर्क
वहीं, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याची की दलीलों को कमजोर करार दिया और स्पष्ट किया कि, ऐसा कोई प्रमाण नहीं दिया गया जिससे यह सिद्ध हो कि प्रशासन ने इस बार ताजिया निकालने पर प्रतिबंध लगाया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याची स्वयं यह स्वीकार कर चुका है कि, न तो पुलिस और न ही प्रशासन की ओर से कोई लिखित निषेध आदेश जारी किया गया है। याची द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों में केवल 22 जून 2025 को कोतवाली थाना क्षेत्र की ओर से जारी एक नोटिस का उल्लेख था, जिसमें केवल यह कहा गया था कि जुलूस निकालते समय शांति और कानून-व्यवस्था का पालन किया जाए। इसमें ताजिए पर कोई प्रत्यक्ष रोक नहीं थी।
कोर्ट ने आवेदन देने की सलाह दी
वहीं, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि, याची यदि इस बार भी ताजिया निकालना चाहता है तो वह सक्षम प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष पूर्व वर्षों की भांति विधिवत अनुमति के लिए आवेदन कर सकता है। प्रशासन परिस्थिति के अनुसार उस पर निर्णय लेने को स्वतंत्र है। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय केवल अनुमानों के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता। दरसल यह आदेश न्यायमूर्ति एम.के. गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने याची आफताब हुसैन और एक अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया है।
काल्पनिकता के आधार पर याचिका दाखिल करना अव्यवहारिक
वहीं, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अदालत का समय और संसाधन केवल वास्तविक और तथ्य-आधारित मामलों में ही लगाए जाने चाहिए। यदि किसी याचिका में कोई ठोस निषेध या प्रमाण न हो और वह केवल कल्पनाओं पर आधारित हो, तो यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।