अखिलेश के केदारेश्वर मंदिर से भड़के केदारनाथ के पुरोहित, इटावा से देहरादून तक गरमाई सियासत...
बीजेपी पर दोहरे रवैये का आरोप
6 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
Akhilesh Yadav: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा बनाए गए केदारेश्वर महादेव मंदिर को लेकर देश में नया विवाद खड़ा हो गया है। यह मंदिर केदारनाथ धाम की तर्ज पर बनाया गया है, जिसे लेकर उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहितों ने कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि इस तरह की नकल न सिर्फ धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ है, बल्कि केदारनाथ जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाले स्थल की पहचान को भी नुकसान पहुंचाती है। पुरोहितों ने इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
तीर्थ पुरोहितों ने बताया आस्था के साथ खिलवाड़
केदारनाथ धाम से जुड़े पंडा समाज और स्थानीय पुरोहितों का कहना है कि किसी भी धार्मिक प्रतीक की हूबहू नकल बनाना सही नहीं है। उनका कहना है कि मंदिर का नाम और रूप केदारनाथ से इतना मिलता-जुलता है कि भ्रम की स्थिति बन सकती है। तीर्थ पुरोहितों का स्पष्ट कहना है कि इटावा के मंदिर का नाम और स्वरूप दोनों बदले जाने चाहिए ताकि केदारनाथ की पवित्र पहचान से कोई छेड़छाड़ न हो।
तीन साल में बना मंदिर
यह मंदिर अखिलेश यादव के गढ़ इटावा में बनवाया गया है। इसका निर्माण 7 मार्च 2021 को भूमि पूजन के साथ शुरू हुआ था। जनवरी 2024 में मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। इसे केदारेश्वर महादेव मंदिर नाम दिया गया, जो केदारनाथ से बेहद मिलता जुलता है। यही नाम और रूप-रेखा अब विवाद का कारण बन रहे हैं।
सियासत भी गर्म सपा और बीजेपी आमने-सामने
इस पूरे मामले पर राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। कुछ समय पहले उत्तराखंड की धामी सरकार ने दिल्ली में बन रहे एक अन्य केदारनाथ मंदिर की नकल पर नाराज़गी जताई थी और कानून की बात कही थी। अब विपक्ष पूछ रहा है कि इटावा के मंदिर पर चुप्पी क्यों? सपा के विरोधियों का आरोप है कि 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश ने यह मंदिर बनवाया है, ताकि हिंदू वोटरों को साधा जा सके। वहीं, सपा इसे आस्था और विकास का प्रतीक बता रही है।
पंडा समाज ने की कानूनी कार्रवाई की मांग
देवस्थानम बोर्ड के पूर्व सदस्य और तीर्थ पुरोहितों ने यह मामला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पास उठाने की बात कही है। वे चाहते हैं कि धार्मिक प्रतीकों की नकल को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाए।