यूपी में तबादला विवाद पर गरमाई सियासत,
मायावती और अखिलेश ने योगी सरकार को घेरा
1 months ago
Written By: NEWS DESK
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर तबादलों को लेकर बवाल मच गया है। स्टांप और पंजीयन विभाग में बड़े पैमाने पर हुए तबादलों में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष हमलावर हो गया है। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर सीधा हमला बोला है।
मायावती का योगी सरकार पर निशाना
बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर प्रदेश में जारी तबादला प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं और योगी सरकार से भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। अपने पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि, "देश के अधिकतर प्रदेशों की तरह यूपी में भी हर स्तर पर सरकारी कार्यकलापों के साथ ही विभिन्न विभागों में भ्रष्टाचार और हिस्सेदारी के आरोपों से घिरे तबादलों की अनवरत आम चर्चा व खबरों का माननीय मुख्यमंत्री को कड़ा संज्ञान लेकर ना सिर्फ भ्रष्टाचार निरोधक विजिलेन्स विभाग आदि को सक्रिय करना बल्कि समयबद्ध एसआईटी का भी गठन करके व्यवस्था में आवश्यक सुधार करना जन व देशहित में जरूरी है।" मायावती ने आगे लिखा है कि "सरकारी भ्रष्टाचार व अफसरों की द्वेषपूर्ण मनमानी पर यूपी सीएम जितना जल्द सख़्त क़दम उठाए उतना बेहतर है।"
अखिलेश यादव का व्यंग्यपूर्ण हमला
वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मामले को लेकर तंज कसा है। उन्होंने अपने एक्स पोस्ट में लिखा है कि, "जिसको ट्रांसफ़र में नहीं मिला हिस्सा वही राज खोलके सुना रहा है किस्सा... सच तो ये है कि, कई मंत्रियों ने ट्रांसफ़र की फ़ाइल की ‘फ़ीस’ नहीं मिलने पर फ़ाइल लौटा दी है। सुना तो ये था कि इंजन ईंधन की मांग करता है, पर यहां तो डिब्बा तक अपने ईंधन के जुगाड़ में लगा है।"
योगी सरकार की कार्रवाई
स्टांप एवं पंजीयन विभाग में हुए तबादलों को लेकर सामने आई शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सभी तबादलों पर रोक लगा दी है और जांच के आदेश दे दिए हैं। हालांकि, इस कदम के बावजूद विपक्ष का हमला जारी है और सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने की रणनीति अपनाई जा रही है।
विपक्ष-सत्ता आमने-सामने
हालांकि यूपी में तबादला विवाद ने अब सियासी रूप ले लिया है। जहां एक ओर विपक्ष इसे "भ्रष्टाचार का उदाहरण" बता रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इसे "जिम्मेदारी और पारदर्शिता की प्रक्रिया" कहकर बचाव की मुद्रा में दीखाई दे रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे से किस प्रकार पार पाती है और विपक्ष इसे आगामी चुनावों तक कैसे भुनाता है।