यूपी में बदल रहा मुस्लिम वोट बैंक का मूड,
क्या साबित हो सकता है सपा के लिए खतरे की घंटी ?
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक को लंबे समय तक समाजवादी पार्टी का कोर समर्थन माना जाता रहा है। लेकिन अब यह राजनीतिक समीकरण धीरे-धीरे दरकता हुआ नजर आ रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को मिले कुल मतों में मुस्लिम समाज की हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत तो वहीं 2022 के चुनाव में 80 प्रतिशत थी, परंतु अब यही समाज खुद को राजनीतिक रूप से उपेक्षित महसूस कर रहा है। स्थिति यह है कि सपा और इंडिया गठबंधन के पक्ष में खड़े रहे कई प्रभावशाली मुस्लिम नेता भी अब खुलेआम समाजवादी पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं। हाल ही में कई मौलानाओं और मुस्लिम नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से संकेत मिल रहे हैं कि, मुस्लिम समुदाय अब समाजवादी पार्टी के अलावा कोई नया राजनीतिक विकल्प तलाश रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि, कभी मुस्लिम–यादव वोट बैंक का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी से अब खुद मुस्लिम मतदाता क्यों दूर होने लगे हैं? आइए, इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य की पड़ताल करते हैं—
सपा की नींव माना जाता रहा है M फैक्टर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम मतदाता लंबे समय से समाजवादी पार्टी की सबसे विश्वसनीय नींव माने जाते रहे हैं, लेकिन अब यह आधार हिलता दिखाई दे रहा है। हाल के दिनों में आई तीन-चार अहम घटनाएं इस बदलते रुझान की पुष्टि करती हैं। उन्नाव से लेकर बरेली तक मुस्लिम समाज में अखिलेश यादव के प्रति नाराज़गी की लहर चल रही है। मुस्लिम नेता खुलेआम सवाल उठा रहे हैं कि, जब-जब समुदाय संकट में आया, तब सपा नेतृत्व चुप क्यों रहा?
मुस्लिम नेताओं के बदलते सुर
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वरिष्ठ नेता इमरान मसूद ने दो बार सपा को कटघरे में खड़ा किया है। वहीं उधर, बरेली से मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने सपा को सीधी चेतावनी दी कि, अगर पार्टी ने मुस्लिमों की चिंता नहीं की तो बड़ा सामाजिक-राजनीतिक बदलाव होगा। वहीं अभी हाल ही में उन्नाव के मुसलमानों की गहरी नाराज़गी सामने आई, जहाँ आम मुस्लिमों ने अखिलेश यादव पर पक्षपात और उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया है। वहीं अभी हाल ही में मौलाना साजिद रशीदी ने भी सपा-कांग्रेस पर हमला बोला है। इन घटनाओं से यह स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं कि मुस्लिम समाज अब समाजवादी पार्टी को अपने एकमात्र राजनीतिक विकल्प के रूप में नहीं देख रहा। उसका सपा के ऊपर से भीतर ही भीतर भरोसा दरक रहा है, और एक वैकल्पिक नेतृत्व या मंच की तलाश शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सपा मुस्लिम वोट बैंक को स्थायी रूप से खोने की दिशा में बढ़ रही है? और क्या 2027 का विधानसभा चुनाव इसके समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है? आइए अब उन घाटों पर नजर डालते हैं जो मुस्लिम समाज की सपा से तल्खियों की ओर इशारा करती हैं…
इमरान मसूद की खुली चुनौती – "सपा हमारी सीट तय नहीं करेगी"
कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने हाल ही में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के खिलाफ दो टूक बयान देते हुए कहा कि सपा को यह अधिकार नहीं है कि वह कांग्रेस की सीटों का निर्धारण करे। उन्होंने 2027 विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस को कमजोर करने की किसी भी कोशिश का विरोध करने की बात की। इमरान मसूद ने यह भी आरोप लगाया कि जब उन्होंने मुसलमानों के पक्ष में आवाज़ उठाई, तब सपा ने उन्हें "स्लीपर सेल" कहकर बदनाम किया। यह बयान इस ओर संकेत करता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे अब सपा की नीतियों और व्यवहार से बेहद असंतुष्ट हैं।
उन्नाव में सपा के खिलाफ गुस्सा – "चुनाव के बाद भूल जाते हैं नेता"
वहीं उन्नाव जिले से आई रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम समुदाय के आम मतदाताओं ने साफ कहा कि समाजवादी पार्टी के नेता चुनाव से पहले वादे करते हैं, लेकिन जीत के बाद वे ग़ायब हो जाते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मुस्लिम वोटर सिर्फ संख्या बनकर रह गए हैं, जिनकी समस्याएं न तो सपा उठाती है और न ही हल करती है। यह असंतोष केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि व्यापक असंतुलन का संकेत देता है — जहाँ मुस्लिम समुदाय सपा को अब एक ‘विश्वसनीय प्रतिनिधि’ के रूप में नहीं देख रहा है। यहां इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का पुतला दहन किया। जामा मस्जिद गंज शहीदा कब्रिस्तान के पास हुए इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया।
बरेली से बिगड़ी सियासत – मौलाना रज़वी की सीधी चेतावनी
वहीं बरेली के मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने अभी हाल ही में सपा को बड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पार्टी ने मुस्लिमों के हितों की अनदेखी बंद नहीं की, तो समाज दूसरी ओर रुख कर सकता है। उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा से गठजोड़ कोई गुनाह नहीं है, अगर वह मुस्लिमों की बात सुनने को तैयार हो। माना जा रहा है कि उनका यह बयान सपा के उस परंपरागत मुस्लिम समर्थन को सीधी चुनौती है, जो दशकों से उसके वोट बैंक का आधार रहा है। रज़वी का झुकाव भाजपा की ओर संकेत करता है कि अब "सिर्फ सांप्रदायिकता" के डर से मुस्लिम वोटर बांधकर नहीं रखा जा सकता।
मौलाना साजिद रशीदी का बदला रुख: कहा-अब बीजेपी भी विकल्प
वहीं, मौलाना साजिद रशीदी ने अभी हाल ही में एक वीडियो जारी कर कांग्रेस, सपा और अन्य विपक्षी दलों पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि बीते 65 वर्षों से मुसलमानों को ठगने वाली पार्टियों ने सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति की, जबकि असल में कोई लाभ नहीं दिया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी के 'सौगात-ए-मोदी किट' की तारीफ करते हुए कहा कि, यह मुसलमानों के लिए एक सकारात्मक पहल है। उन्होंने अपील की कि मुस्लिम समाज अब बीजेपी से नफरत छोड़कर उसे भी एक मौका दे, क्योंकि विपक्ष ने हमें सिर्फ इस्तेमाल किया है, अपनाया कभी नहीं।
मुस्लिम समाज की बदलती मंशा
ऐसे में देखा जा रहा है कि, चाहे इमरान मसूद जैसे नेता हों, उन्नाव के आम मतदाता या बरेली के मौलाना — एक साझा सोच उभर रही है कि मुस्लिम समाज अब खुद को राजनीतिक रूप से ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सपा द्वारा न तो ज़मीनी स्तर पर समस्याओं को उठाया गया, न ही जेलों में बंद मुस्लिम नेताओं की आवाज़ बनकर सामने आई। नतीजतन, वह समुदाय जो एक समय सपा का कोर वोट बैंक हुआ करता था, अब दूसरे राजनीतिक विकल्पों की ओर देखने लगा है — चाहे वह कांग्रेस हो, क्षेत्रीय दल हो या फिर रणनीतिक दृष्टि से भाजपा ही क्यों न हो।