टैबलेट खरीद पर मंत्री नंद गोपाल नंदी का बड़ा सवाल,
3100 करोड़ के बजट में घोटाले की आशंका, अफसरशाही पर सीधा निशाना
17 days ago
Written By: NEWS DESK
उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी एक बार फिर अफसरशाही के रवैये और फैसलों पर खुलकर सामने आ गए हैं। हाल ही में अधिकारियों की कार्यप्रणाली से त्रस्त होकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखने वाले नंदी ने अब टैबलेट खरीद योजना पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने 3100 करोड़ रुपये के बजट में भ्रष्टाचार की आशंका जताते हुए योजना में पारदर्शिता और जरूरत के आधार पर पुनर्विचार की मांग की है।
3100 करोड़ में 3.10 लाख टैबलेट की खरीद, मंत्री को खटका आंकड़ा
सरकार की हालिया योजना के अनुसार, वर्ष 2025-26 के बजट में 3.10 लाख टैबलेट खरीदने का प्रस्ताव रखा गया है, जिसकी अनुमानित लागत 3100 करोड़ रुपये है। यानी औसतन प्रत्येक टैबलेट की कीमत 10,000 रुपये से अधिक बैठ रही है। मंत्री नंदी ने इस खरीद पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि, "क्या यह लागत वाकई वाजिब है या फिर यह किसी बड़े कमीशन घोटाले की शुरुआत है?" उन्होंने दावा किया कि टैबलेट की तुलना में स्मार्टफोन ज्यादा सस्ते और उपयोगी होते हैं, खासतौर पर स्कूलों के बच्चों के लिए।
स्मार्टफोन बनाम टैबलेट: क्या है बहस का मूल मुद्दा?
नंद गोपाल नंदी के अनुसार, स्मार्टफोन छात्रों और स्कूल स्टाफ के लिए ज्यादा व्यावहारिक और किफायती विकल्प हैं। लेकिन अफसरशाही ने स्मार्टफोन की जगह टैबलेट खरीदने का निर्णय लिया है, जो न केवल महंगा है, बल्कि इसके पीछे भ्रष्टाचार की बू आ रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “यह निर्णय न तो पारदर्शी है और न ही जरूरत आधारित। योजना में अफसर कमीशनखोरी के खेल में लगे हैं।”
अधिकारियों की मनमानी से मंत्री नाराज़
नंदी ने अपनी चिट्ठी में यह भी लिखा कि अफसर मुख्यमंत्री के आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं, फाइलें जानबूझकर दबाई जा रही हैं और मंत्री के निर्देशों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन करना मेरा धर्म है। लेकिन जब अधिकारी अपनी मनमानी करते हैं और सरकारी नीतियों के खिलाफ जाते हैं, तो यह असहनीय है।”
जांच की मांग और सरकार की चुप्पी
मंत्री ने मांग की है कि इस पूरी खरीद प्रक्रिया की उच्चस्तरीय जांच करवाई जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। उन्होंने टेंडर प्रक्रिया की निष्पक्ष समीक्षा और सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने की भी बात कही है। फिलहाल इस मामले में सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन मंत्री स्तर पर इस तरह की आपत्ति से यह साफ है कि अंदरूनी असहमति और पारदर्शिता पर सवाल अभी भी शासन के भीतर गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं।