इटावा कथावाचक प्रकरण पर संत समाज की कड़ी प्रतिक्रिया,
अखिल भारतीय संत समिति ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग
1 months ago
Written By: NEWS DESK
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथावाचक की पिटाई और चोटी काटने की घटना ने जहां राजनीतिक सरगर्मी को हवा दे दी है, वहीं अब धार्मिक संत समाज भी खुलकर सामने आ गया है। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इस मामले को संविधान का खुला उल्लंघन बताते हुए राज्य सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
यादव कथावाचकों के साथ मारपीट और अपमान
घटना में यादव समाज के कथावाचक व्यास मुकुट मणि और उनके सहायक संत कुमार यादव को कथित रूप से पीटा गया और उनकी चोटी काटकर उनका अपमान किया गया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद मामला देशभर में धार्मिक और जातीय विवाद का विषय बन गया।
“जाति नहीं, आचरण महत्वपूर्ण” – संत समिति
वहीं इसको लेकर, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा है कि, भारत की परंपरा में कथावाचन का अधिकार किसी जाति विशेष तक सीमित नहीं रहा है। उन्होंने कहा, "वाल्मीकि से लेकर कबीरदास तक, हमारे पास ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जहाँ कथावाचक विभिन्न जातियों से रहे हैं। समाज ने इन्हें अपनाया है, सम्मान दिया है। लेकिन आज एक खतरनाक प्रवृत्ति देखी जा रही है – जातिवाद को हथियार बनाकर समाज को विभाजित करने की साजिश हो रही है।" उन्होंने कहा है कि, इस पूरे मामले की आड़ में उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक और जातीय रूप से भड़काने की कोशिश की जा रही है। यह न सिर्फ धर्म के खिलाफ है बल्कि संविधान के भी विपरीत है।
"कथावाचक ने क्यों छुपाई जाति?"
हालांकि, संत समिति ने यह भी सवाल उठाया कि कथावाचक ने अपनी जाति को क्यों छुपाया, और पहले बौद्ध कथा तथा अब भागवत कथा कहने के पीछे उद्देश्य क्या है। उन्होंने कहा कि इस तरह की असंगत गतिविधियाँ समाज को गुमराह कर सकती हैं और जांच का विषय हैं।
मुख्यमंत्री से की निष्पक्ष जांच की मांग
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने स्पष्ट कहा है कि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दोनों पक्षों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। उन्होंने इशारा किया कि, समाजवादी पार्टी की इस मामले में अचानक सक्रियता और जातीय विमर्श को हवा देना, किसी गहरी साजिश की ओर संकेत करता है।
"उत्तर प्रदेश को जलाने की साजिश"
संत समिति ने यह भी कहा है कि, यह घटना कोई अकेला मामला नहीं है, इससे पहले कौशांबी में भी दो जातियों को आमने-सामने लाने की कोशिश की गई थी। यह एक सुनियोजित प्रयास है ताकि प्रदेश में शांति भंग की जा सके।