25 जून, आपातकाल के 50 साल, सपा-भाजपा के बयानों से गरमाई सियासत,
सपा नेता बोले- आज भी अघोषित इमरजेंसी
1 months ago
Written By: NEWS DESK
आज 25 जून है, भारतीय लोकतंत्र का वह दिन, जिसे इतिहास में आपातकाल लागू होने के लिए जाना जाता है। आज इमरजेंसी के 50 साल पूरे हो गए हैं, और इसी मौके पर एक बार फिर देश में लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और राजनीतिक स्वतंत्रता को लेकर बहस छिड़ गई है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों ने इस मौके पर अपनी प्रतिक्रिया दी है, लेकिन दोनों के सुर पूरी तरह विपरीत नजर आए।
आज भी संकट में स्वतंत्रता
सपा नेता राजेंद्र चौधरी ने इमरजेंसी को देश के लिए “बेहद गंभीर समय” करार दिया और कहा है कि, आज भी हालात उस दौर से कुछ कम नहीं हैं। उन्होंने कहा, “आज देश में अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति है। जो सरकार के खिलाफ बोलता है, उसके खिलाफ फर्जी मुकदमे लाद दिए जाते हैं, उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आज भी संकट में है।”
आज भी लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना
राजेंद्र चौधरी ने खुद को भी उस संघर्ष का हिस्सा बताया, जब 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ देशभर में आंदोलन हुआ था। उन्होंने कहा, “मैं तब एक राजनीतिक कार्यकर्ता था और मैंने उस दौर को नजदीक से देखा है। देश में न कोई बोल सकता था, न लिख सकता था। प्रेस की आजादी पूरी तरह छिन चुकी थी। हम लोगों ने संघर्ष किया, जो दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बन गया।” चौधरी ने आज के हालात की तुलना 1975 की इमरजेंसी से करते हुए कहा कि “आज भी सच्ची राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव है। भारत की स्वतंत्रता के उद्देश्य और लोकतांत्रिक मूल्यों की लगातार अवहेलना हो रही है।”
इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र का काला दिन
वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इमरजेंसी को “भारतीय लोकतंत्र का काला दिन” बताया। उन्होंने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट में लिखा—“25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र का काला दिवस है। आज ही के दिन कांग्रेस ने देश पर आपातकाल थोपकर संविधान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों का गला घोंटा था। लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले सभी महान सेनानियों को कोटिशः नमन।”
CM ने दी श्रद्धांजलि
सीएम योगी ने अपने संदेश में उन लोगों को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कांग्रेस को लोकतंत्र की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया और देशवासियों को लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प दोहराने की अपील की। आपातकाल की 50वीं बरसी पर सियासी बयानबाजी अपने चरम पर है—एक ओर लोकतंत्र के मूल अधिकारों के दमन की आलोचना, तो दूसरी ओर अघोषित सेंसरशिप और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप। लेकिन इस बहस में जो सवाल फिर खड़ा हो रहा है, वह यही है—क्या भारत आज भी वैसा ही लोकतांत्रिक है, जैसा 1947 के बाद होना चाहिए था ?