पंचायत चुनाव 2026: पुराने रंग में दिखी बसपा, गांव-गांव गुपचुप तैयारी,
पंचायत चुनाव जीतने को मायावती का बड़ा दांव
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
U.P Politics: उत्तर प्रदेश के आगामी पंचायत चुनाव 2026 को लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपनी तैयारियों को पूरी तरह तेज कर दिया है। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने इस चुनाव को अपनी राजनीति को दोबारा खड़ा करने का बड़ा मौका मानते हुए एक नया और मजबूत प्लान बनाया है। इस बार बसपा का जोर केवल अपने पारंपरिक वोट बैंक दलित समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि पार्टी पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज को भी साथ जोड़ने की कोशिश में जुटी है। मायावती का लक्ष्य है कि पंचायत चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर पार्टी की पकड़ ग्रामीण इलाकों में फिर से मजबूत हो सके।
सामाजिक इंजीनियरिंग की पुरानी रणनीति फिर से लागू
सूत्रों के अनुसार, बसपा इस बार उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक समीकरणों पर खास ध्यान दे रही है। पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज को बड़ी संख्या में टिकट देने का फैसला किया गया है। मायावती की यह योजना 2007 के विधानसभा चुनावों की याद दिलाती है, जब दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ की वजह से बसपा ने सत्ता हासिल की थी। इस बार भी वह उसी फॉर्मूले को पंचायत स्तर पर दोहराने की कोशिश कर रही हैं।
गोपनीय और व्यवस्थित तरीके से तैयारियां
पार्टी ने चुनावी तैयारियों को पूरी तरह गोपनीय और सुनियोजित रखा है। गांव-गांव जाकर बूथ स्तर पर बैठकों का आयोजन किया जा रहा है। इन बैठकों में न केवल दलित वोटरों को जोड़ने पर जोर है, बल्कि पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समुदाय को भी पार्टी की नीतियों से जोड़ा जा रहा है। सोशल मीडिया चर्चाओं के अनुसार, बसपा कार्यकर्ता छोटी-छोटी सभाएं कर रहे हैं, जिनमें मायावती के नेतृत्व और बसपा की नीतियों को प्रचारित किया जा रहा है।
हार के बाद नया मौका
पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बाद मायावती इस पंचायत चुनाव को अपनी राजनीतिक जमीन वापस हासिल करने का मौका मान रही हैं। बसपा ने स्थानीय स्तर पर नए चेहरों को आगे लाने और पुराने नेताओं को सक्रिय करने का फैसला किया है। पार्टी मानती है कि पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन आगे विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए आधार तैयार करेगा।
सामाजिक न्याय और चुनौतियां
मायावती ने कई बार कहा है कि बसपा का मुख्य एजेंडा सामाजिक न्याय और समावेशी विकास है। टिकट वितरण में भी यही रणनीति अपनाई जा रही है, जिसमें खासकर मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की योजना है। हालांकि, पार्टी के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। हाल के वर्षों में बसपा का वोट बैंक घटा है और कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके बावजूद, मायावती का दलित और जाटव समुदाय पर मजबूत पकड़ अब भी बरकरार है। सोशल मीडिया पर कई लोग इस रणनीति की तारीफ कर रहे हैं और मानते हैं कि इससे ग्रामीण स्तर पर पार्टी की ताकत बढ़ सकती है