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पार्टी में परिवारवाद पर प्रहार या राजनीति का दांव? अनुप्रिया ने पति को हटाया, साधा ब्राह्मण समीकरण

22 days ago
Written By: Ashwani Tiwari

Anupriya Patel:  वाराणसी और पूर्वांचल की राजनीति में प्रभावशाली पार्टी अपना दल (एस) इन दिनों जबरदस्त सियासी उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। गुरुवार देर रात पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपने पति और यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल को पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटा दिया। वहीं इस फैसले ने पार्टी के भीतर चल रहे मतभेदों और सत्ता-संघर्ष को खुलकर सामने ला दिया है। आशीष पटेल को अब संगठन में तीसरे नंबर की हैसियत में केवल उपाध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ ही ब्राह्मण नेता माता बदल तिवारी को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है, जिससे पार्टी ने पूर्वांचल के पारंपरिक वोट बैंक को साधने की कोशिश की है।

परिवारवाद के आरोपों के बीच अनुप्रिया का बड़ा फैसला
दरअसल, यह बदलाव सिर्फ संगठनात्मक नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। बता दें कि पार्टी के कई पुराने नेता हाल ही में बगावत करते हुए अपना मोर्चा बना चुके हैं और आरोप लगा चुके हैं कि पार्टी पर सिर्फ एक परिवार का कब्जा है। इसी पृष्ठभूमि में अनुप्रिया पटेल का यह फैसला पार्टी के भीतर असंतोष को नियंत्रित करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

पति–पत्नी मॉडल पर उठे सवालों के बाद बदला गया समीकरण
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव (मुख्यालय) मुन्नार प्रजापति द्वारा जारी नई कार्यकारिणी सूची में आठ प्रमुख नेताओं को जगह दी गई है। इनमें आशीष पटेल और माता बदल तिवारी को उपाध्यक्ष, केके पटेल को राष्ट्रीय महासचिव, राकेश यादव, अलका पटेल और पप्पू माली को राष्ट्रीय सचिव, जबकि डॉ. अमित पटेल और रेखा वर्मा को कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया है। लेकिन चर्चा का केंद्र बिंदु आशीष पटेल की पदावनति ही बना हुआ है। 2018 में जब आशीष पटेल विधान परिषद सदस्य बने थे, तब वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। इसके बाद वह कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए, जबकि उनकी पत्नी अनुप्रिया पटेल राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं। इस पति–पत्नी सत्ता मॉडल पर लगातार सवाल उठते रहे और पार्टी में असंतोष बढ़ता गया। अब जब उन्हें उपाध्यक्ष बना दिया गया है, तो यह बदलाव पार्टी की अंदरूनी राजनीति में बड़ा संकेत माना जा रहा है।

कौन-कौन हैं शामिल

अपना दल में फेरबदल बागियों के दबाव का नतीजा?
सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि यह बदलाव अपना मोर्चा बनाने वाले नेताओं के दबाव का नतीजा है। हाल ही में हेमंत चौधरी और ब्रजेंद्र प्रताप सिंह जैसे पुराने नेताओं ने नया संगठन बना लिया था और सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि अपना दल (एस) को छोड़ दें तो देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं, जहां पत्नी राष्ट्रीय अध्यक्ष और पति कार्यकारी अध्यक्ष हो। वहीं पार्टी संविधान के अनुसार राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष का पद तभी होता है जब पार्टी अध्यक्ष न चुना गया हो, लेकिन आशीष पटेल लंबे समय तक इस पद पर बने रहे। यही नहीं, वे लगातार खुद को पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में प्रस्तुत भी करते रहे, जिससे दिन-प्रतिदिन अन्य नेताओं में नाराजगी बढ़ती गई।

ब्राह्मण-ओबीसी संतुलन साधने में जुटी अनुप्रिया पटेल
अनुप्रिया पटेल ने जिस तरह से ब्राह्मण नेता माता बदल तिवारी को साथ में उपाध्यक्ष बनाकर जातीय संतुलन साधा है, उसे भी रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं मेरठ की अलका पटेल, यादव समाज से आने वाले राकेश यादव और माली समाज के पप्पू माली को सचिव बनाकर ओबीसी समाज में पकड़ मजबूत करने की कोशिश की गई है। बता दें कि पार्टी के प्रवक्ताओं ने कहा है कि यह नई टीम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तैयारी को मजबूत करने के उद्देश्य से बनाई गई है। संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने और एनडीए के साथ अपने गठबंधन को मजबूती देने के लिए यह आवश्यक था।

डैमेज कंट्रोल के तौर पर देखा जा रहा है संगठनात्मक बदलाव
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इस कदम को सिर्फ संगठनात्मक नहीं, बल्कि एक सियासी डैमेज कंट्रोल के रूप में देख रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में मीरजापुर जैसी मजबूत सीट पर भी अनुप्रिया पटेल को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इससे यह साफ हुआ कि पार्टी में असंतोष गहराया है और वोटर भी अब आंखें तरेर रहे हैं।

आशीष पटेल बोले- मुझे खत्म करने के लिए खर्च किए जा रहे 1700 करोड़ रुपये
यह भी ध्यान देने कि बात है कि आशीष पटेल ने हाल ही में दावा किया था कि उन्हें और उनकी पार्टी को खत्म करने के लिए 1700 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। वह एसटीएफ, सूचना विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों पर भी आरोप लगा चुके हैं। उनकी पत्नी अनुप्रिया की बहन और विपक्षी दल की नेता पल्लवी पटेल तक उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुकी हैं। इससे कुर्मी समाज में यह धारणा बनने लगी कि पति-पत्नी की यह जोड़ी सिर्फ अपने फायदे के लिए समाज और कार्यकर्ताओं का उपयोग कर रही है। इन सबके बीच अनुप्रिया पटेल के इस कदम को एक तीर से कई निशाने की रणनीति माना जा रहा है कि एक तरफ पति की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर लगाम, दूसरी ओर पार्टी को टूटने से बचाना और तीसरी ओर संगठन में संतुलन दिखाकर परिवारवाद के आरोपों को कमजोर करना।

 

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