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जो कभी सहारा था, सांसे छीन रहा अब वही प्लास्टिक ? भोजन, पानी और हवा के जरिए शरीर में पहुंच रहा ये मीठा जहर ?

5 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा

World Environment Day:  क्या आप जानते हैं कि आप जो प्लास्टिक की बोतल आज फेंकते हैं, वह सैकड़ों सालों तक धरती पर बनी रह सकती है? क्या आपने कभी सोचा है कि, नमक और चीनी जैसे रोज़ाना इस्तेमाल होने वाली चीजों में भी माइक्रोप्लास्टिक मिल चुका है? माइक्रोप्लास्टिक और प्लास्टिक में मौजूद रसायनों से हार्मोनल असंतुलन, कैंसर, श्वसन रोग, और प्रजनन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर इसका असर और भी घातक हो सकता है। समय से पहले जन्म, मृत शिशु, जन्मजात दोष और बचपन में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां इससे जुड़ी हुई हैं। हर साल 5 जून को मनाया जाने वाला यह विश्व पर्यावरण दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि, हमारी धरती खतरे में है और इसकी सबसे बड़ी वजह है प्लास्टिक प्रदूषण। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस की की थीम है, "Ending Plastic Pollution" यानी प्लास्टिक को खत्म करने की पहल। अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ बात न करें, बल्कि कदम उठाएं, क्योंकि अगर अभी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी।

जीवन का हिस्सा बन चुक है प्लास्टिक
चिंता की बात यह है कि, प्लास्टिक हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। लेकिन यही प्लास्टिक, जो सस्ता, हल्का और सुविधाजनक लगता है, अब पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इस विषय में गहरी जानकारी देते हुए ऑर्गेनाइजेशन फॉर कंजर्वेशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड नेचर (ओशन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख, डॉ. सूर्य कान्त बताते हैं कि, प्लास्टिक का प्रदूषण न केवल भूमि और जल को प्रभावित कर रहा है, बल्कि हमारे शरीर में भी जहर घोल रहा है। प्लास्टिक तब तक जहरीले गैस और रसायन छोड़ता रहता है, जब तक वह पूरी तरह विघटित नहीं हो जाता। इसके कारण मिट्टी की उर्वरकता खत्म हो जाती है और फसलें विषैली हो जाती हैं।

दुनिया भर में 9.2 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक
डॉ. सूर्य कान्त द्वारा लिखित इंडियन जर्नल ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित लेख “सेव द प्लेनेट” के अनुसार, साल 2040 तक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में 23 से 37 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा होने का अनुमान है। वर्ष 1950 से 2017 तक दुनिया भर में 9.2 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है। ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर किस हद तक पहुंच चुका है।

हमारे भोजन तक पहुंच रहा ये जहर
सबसे चिंताजनक बात यह है कि, प्लास्टिक अब हमारे भोजन, पानी और हवा के ज़रिये हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स कहा जाता है, हमारे नमक और चीनी तक में मिल चुके हैं। एक अध्ययन में यह पाया गया कि समुद्री नमक, टेबल सॉल्ट और बाजार से खरीदी गई चीनी के हर नमूने में माइक्रोप्लास्टिक के कण मौजूद थे। एक किलो नमक में औसतन 90 माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े पाए गए, जबकि एक किलो चीनी में 11 से 68 तक कण मिले।

हो सकती हैं गंभीर बीमारियां
डॉ. सूर्य कान्त आगे बताते हैं कि, माइक्रोप्लास्टिक और प्लास्टिक में मौजूद रसायनों से हार्मोनल असंतुलन, कैंसर, श्वसन रोग, और प्रजनन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर इसका असर और भी घातक हो सकता है—समय से पहले जन्म, मृत शिशु, जन्मजात दोष और बचपन में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां इससे जुड़ी हुई हैं। प्लास्टिक का असर केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है। यह जल जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। समुद्री जीव इसे खाना समझ कर निगल लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है और समुद्री पारिस्थितिकी असंतुलित हो जाती है। भूमि पर भी प्लास्टिक कचरे से पशु-पक्षी प्रभावित होते हैं।

प्रयासरत हैं सरकारें
हालांकि, प्लास्टिक की इस समस्या से निपटने के लिए सरकारें भी प्रयासरत हैं। भारत सरकार ने 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में “Life for Environment” आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन एक ऐसी जीवनशैली अपनाने की बात करता है जो प्रकृति के अनुकूल हो। ऐसे लोगों को ‘ग्रह समर्थक’ कहा जाता है—यानि वे लोग जो अपने छोटे-छोटे कदमों से पृथ्वी को बचाने में सहयोग करते हैं।

धरती मां को बचाना है लक्ष्य
डॉ. सूर्य कान्त का कहना है कि यह धरती हमारी मां है, और हमें अपनी मां को बचाना है। हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे बदलाव लाने होंगे—जैसे बाजार जाते समय कपड़े का थैला लेकर जाना, प्लास्टिक के बजाय पेपर या कपड़े से बने उत्पादों का उपयोग करना, और प्लास्टिक को पूरी तरह नकारना। यदि हम आज कदम नहीं उठाएंगे, तो कल बहुत देर हो जाएगी। विश्व पर्यावरण दिवस हमें याद दिलाता है कि, पृथ्वी केवल रहने की जगह नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी है। अब समय आ गया है कि हम केवल भाषण न दें, बल्कि अपने जीवन में बदलाव लाएं। प्लास्टिक को ना कहें, और धरती को बचाने की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ाएं। यही सच्चा पर्यावरण दिवस है। 

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