Supreme Court: वक्फ इस्लामी परंपरा है, पर इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं,
सरकार का सुप्रीम कोर्ट में बयान
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Supreme Court: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में बड़ा बयान दिया। सरकार ने कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर मालिकाना हक नहीं जता सकता। अगर किसी सरकारी जमीन को वक्फ घोषित कर दिया गया है तो सरकार को वह संपत्ति वापस लेने का पूरा हक है। यह बयान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन कानून 2025 की सुनवाई के दौरान दिया। इसके साथ ही तुषार मेहता ने यह भी कहा कि वक्फ एक इस्लामी परंपरा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। वक्फ का मतलब सिर्फ दान होता है कि जैसे सभी धर्मों में होता है। कोई भी धर्म दान को जरूरी नहीं मानता। इसलिए वक्फ भी कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
क्या होता है वक्फ ?
वक्फ का मतलब होता है किसी संपत्ति को धार्मिक या समाजसेवा के काम के लिए समर्पित करना। अगर कोई जमीन लंबे समय से धार्मिक काम में है तो उसे वक्फ घोषित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि जब कोई जमीन बिना दस्तावेज़ के भी धर्मार्थ इस्तेमाल हो रही हो। उसे वक्फ मान लिया जाता है। सरकार ने कहा कि यह मौलिक अधिकार नहीं है। इसे कानून से मान्यता मिली है, जिसे सरकार बदल सकती है।
सरकारी जमीन पर वक्फ दावा गलत- सरकार
सरकार ने कहा कि अगर कोई सरकारी जमीन पर वक्फ का दावा करता है तो यह गलत है। सरकार को वह जमीन वापस लेने का पूरा हक है। पहले कानून में था कि कलेक्टर फैसला करेंगे। अब सुझाव दिया गया कि कोई और अधिकारी यह तय करे। क्योंकि कलेक्टर अपने ही मामले में जज नहीं हो सकते। इसके साथ ही सरकार ने कहा कि कोई भी प्रभावित व्यक्ति ट्रिब्यूनल, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। मतलब सभी को इंसाफ तक पहुंच का अधिकार रहेगा।
वक्फ बोर्ड धार्मिक काम में नहीं होता शामिल
वक्फ बोर्ड किसी भी धार्मिक काम में हिस्सा नहीं लेता। यह सिर्फ संपत्तियों की देखरेख करता है। जबकि दूसरे धर्मों के ट्रस्ट धार्मिक काम में भी शामिल होते हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 संसद से पास
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 अप्रैल में संसद से पास हुआ। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को इसे मंजूरी दी। इसके बाद यह कानून बन गया।