31 साल बाद भी मसूरी में गूंजती हैं 2 सितंबर 1994 की चीखें, उत्तराखंड आंदोलनकारियों के अधूरी उम्मीदें
जानें क्या है मामला
8 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
25 Years Of Uttarakhand: उत्तराखंड अपने अस्तित्व के 25 साल पूरे कर चुका है, लेकिन 2 सितंबर 1994 की दर्दनाक घटना आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। मसूरी की शांत वादियों में उस दिन पुलिस की गोलीबारी ने आंदोलनकारियों को निशाना बनाया। इस बर्बर कार्रवाई में छह आंदोलनकारी शहीद हुए थे, जिनमें दो महिलाएं और चार पुरुष शामिल थे। साथ ही एक पुलिस अधिकारी की भी जान गई थी। आज भी शहीदों के परिवार और साथी आंदोलनकारी पूछते हैं कि क्या उनका बलिदान व्यर्थ गया। 25 साल बाद भी आंदोलनकारियों की कई मांगें पूरी नहीं हो पाई हैं।
1994 का मसूरी गोलीकांड
उत्तराखंड राज्य की मांग 1970 के दशक से उठती रही थी। 1990 के दशक में यह आंदोलन और उग्र हो गया। 2 सितंबर 1994 को मसूरी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलीबारी की। इस गोलीकांड में मदन मोहन मंमगाई, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह और राय सिंह बंगारी शहीद हुए। साथ ही सेंट मैरी अस्पताल के बाहर पुलिस सीओ उमाकांत त्रिपाठी की मौत हुई। इस घटना ने आंदोलनकारियों और उनके परिवारों को गहरा आघात पहुंचाया।
उत्तराखंड की स्थापना और खोए आंदोलन के सपने
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य बना। जनता ने इसे नई सुबह माना, लेकिन क्या यह वास्तव में आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड था? 25 साल बाद भी पहाड़ के गांव खाली हो रहे हैं, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, और युवाओं को रोजगार की समस्या है। आंदोलनकारियों का कहना है कि शहीदों के सपनों को अब तक पूरा नहीं किया गया।
राज्य आंदोलनकारियों की पीड़ा और मांगें
आज मसूरी गोलीकांड को 31 साल हो चुके हैं, लेकिन आंदोलनकारी खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे हैं। उन्हें सीमित पेंशन मिली, कई शहीद परिवार आर्थिक संकट में हैं। कई आंदोलनकारियों को राज्य आंदोलनकारी का दर्जा तक नहीं मिला। उनकी मांगें हैं: सभी पात्र आंदोलनकारियों को मान्यता और पेंशन, शहीदों के नाम पर स्कूल या सरकारी भवन, हर जिले में आंदोलन स्मारक और संग्रहालय, स्कूल पाठ्यक्रम में उत्तराखंड आंदोलन का समावेश, और घायल परिवारों को आर्थिक व स्वास्थ्य सहायता।