चाबहार पर अमेरिका की शिकंजा:
भारत की 5 बड़ी कंपनियां और 5 दिग्गज अब संकट में
1 months ago Written By: Ashwani Tiwari
Chabahar Port US sanctions: अमेरिका ने हाल ही में ईरान के चाबहार पोर्ट को भारत को मिली विशेष छूट को रद्द कर दिया है। यह छूट 2018 में Iran Freedom and Counter-Proliferation Act (IFCA) के तहत दी गई थी ताकि भारत–ईरान–अफगानिस्तान के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी बनी रहे। 29 सितंबर 2025 से इस छूट का अंत हो जाएगा। इसका मतलब है कि अब चाबहार पोर्ट में निवेश, उपकरण सप्लाई, रेलवे प्रोजेक्ट या वित्तीय लेन-देन पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते हैं। इस कदम से भारत के रणनीतिक और आर्थिक हितों पर व्यापक असर पड़ने की संभावना है।
भारत पर व्यापक प्रभाव चाबहार पोर्ट पाकिस्तान को बायपास करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत को सीधे जोड़ता है। भारत ने इस परियोजना में करोड़ों डॉलर का निवेश किया है। छूट हटने के बाद उपकरण लाने में महंगाई, बीमा और फाइनेंस की लागत बढ़ सकती है। भारतीय कंपनियों के ठेके और कारोबार प्रभावित हो सकते हैं। विदेश मंत्रालय को अमेरिका और ईरान दोनों के साथ संतुलन साधने में चुनौती का सामना करना होगा।
प्रभावित प्रमुख कंपनियां और उनका नुकसान
India Ports Global Ltd. (IPGL) – चाबहार पोर्ट के शाहिद बेहेष्ती टर्मिनल का संचालन और विकास। अमेरिकी प्रतिबंधों से उपकरण खरीद और वित्तीय लेन-देन में समस्या, अतिरिक्त सैकड़ों करोड़ रुपये का खर्च।
IRCON International Ltd. – चाबहार-ज़ाहदान रेलवे लाइन का निर्माण। परियोजना में देरी और लागत बढ़ने की संभावना।
SAIL और Jindal Steel – रेलवे और पोर्ट के लिए स्टील सप्लाई। परियोजना धीमी होने पर ऑर्डर रुकने और राजस्व नुकसान का खतरा।
भारतीय हार्बर और पोर्ट उपकरण सप्लायर्स – क्रेन और कंटेनर हैंडलिंग उपकरण सप्लाई में देरी। टेंडर रद्द होने और घाटा उठाने की संभावना।
लॉजिस्टिक्स, शिपिंग, वित्तीय और बीमा संस्थान – शिपिंग दरें बढ़ेंगी, वित्तीय लेन-देन मुश्किल होंगे, व्यापारिक मार्जिन घटेगा।
प्रभावित प्रमुख अधिकारी IPGL, IRCON, SAIL और विदेश मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों को अब परियोजना की जिम्मेदारी और अमेरिका-ईरान संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना होगा।
छूट का इतिहास और महत्व 2018 में भारत को मानवीय आपूर्ति और अफगानिस्तान की आर्थिक मदद के लिए IFCA के तहत छूट दी गई थी। अब अमेरिका का यह कदम भारत की रणनीतिक योजनाओं के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा।