क्या टाटा समूह पर कब्ज़े की साजिश…
नोएल टाटा के खिलाफ बढ़ा विरोध, बीच में उतरी सरकार
22 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Tata Group Dispute: देश के सबसे बड़े कारोबारी समूहों में शुमार टाटा समूह इन दिनों गंभीर आंतरिक विवादों से गुजर रहा है। पिछले साल अक्टूबर में दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद समूह की कमान नोएल टाटा को मिली थी। लेकिन इसके बाद से ही लगातार विरोध और शक्ति परीक्षण की खबरें सामने आती रही हैं। अब यह विवाद सतह पर आ गया है और हालात इतने बिगड़ गए हैं कि केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। सोमवार को केंद्र सरकार के दो कैबिनेट मंत्री टाटा समूह के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करने जा रहे हैं।
सरकार और टाटा अधिकारियों की अहम बैठक जानकारी के अनुसार, इस बैठक में टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, उपाध्यक्ष वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा मौजूद रहेंगे। 157 साल पुराने समूह की देखरेख करने वाले टाटा ट्रस्ट्स के बहुमत शेयरधारकों के बीच का झगड़ा अब खुलकर सामने आ चुका है। नमक से लेकर तकनीक तक फैले कारोबार वाले इस समूह के भीतर विवाद का असर कंपनियों के कामकाज पर न पड़े, इसी उद्देश्य से सरकार बातचीत कर रही है।
शक्ति संतुलन पर अटका मामला मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बैठक में ट्रस्ट और ट्रस्टियों के बीच शक्तियों के बंटवारे पर चर्चा होगी। खासकर टाटा संस के बोर्ड में निदेशकों की नियुक्ति और बोर्ड चर्चाओं की जानकारी बाकी ट्रस्टियों से साझा करने जैसे मुद्दे अहम रहेंगे। ट्रस्ट की अगली बैठक 10 अक्टूबर को है और उससे पहले समाधान निकालने की कोशिश की जाएगी।
निदेशक की नियुक्ति और हटाने पर विवाद फिलहाल विवाद की जड़ विजय सिंह को हटाने और उनकी जगह मेहली मिस्त्री को नियुक्त करने का प्रस्ताव है। पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह टाटा संस के बोर्ड में नामांकित निदेशक थे। नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि मिस्त्री की नियुक्ति का समर्थन प्रमित झवेरी, डेरियस खंबाटा और जहांगिर ने किया। इसी से ट्रस्टियों में मतभेद बढ़ गया।
वेणु श्रीनिवासन को हटाने की धमकी स्थिति और तनावपूर्ण तब हो गई जब एक ट्रस्टी ने अन्य ट्रस्टियों को ईमेल भेजकर 10 अक्टूबर की बैठक में वेणु श्रीनिवासन को हटाने की धमकी दी। इसे समूह पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इस कलह की वजह से कंपनी में बोर्ड के कई पद खाली पड़े हैं, लेकिन नियुक्तियों पर सहमति नहीं बन पा रही। अधिकारियों का मानना है कि अगर यह विवाद जल्दी खत्म नहीं हुआ तो इसका असर टाटा समूह के संचालन और साख पर पड़ सकता है।