सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सिर्फ तस्वीर या वीडियो लेना वॉयरिज्म का अपराध नहीं,
निजी गतिविधियों में ही बनता है अपराध
8 days ago Written By: Aniket Prajapati
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया कि किसी महिला की सिर्फ तस्वीर खींचना या मोबाइल फोन से बिना सहमति वीडियो बनाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354C के तहत वॉयरिज्म (Voyeurism) का अपराध नहीं बनता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल तभी अपराध होता है जब किसी महिला की निजी गतिविधियों में गुप्त रूप से ताकझांक की जाए। इसी आधार पर पश्चिम बंगाल के एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपमुक्त कर दिया।
आरोपी पर लगे आरोप और मामला
मामला 18 मार्च 2020 का है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उन्हें रोककर डराया-धमकाया और उनकी सहमति के बिना उनकी तस्वीरें और वीडियो बनाए। शिकायत में कहा गया था कि यह उनकी निजता और मर्यादा का उल्लंघन है। एफआईआर 19 मार्च 2020 को दर्ज की गई और आरोपी पर IPC की धारा 341, 354C और 506 के तहत केस शुरू हुआ।
कोर्ट ने आरोपी को किया आरोपमुक्त
जांच और चार्जशीट दाखिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि वॉयरिज्म के अपराध के लिए आवश्यक तत्व इस मामले में पूरे नहीं होते। शिकायतकर्ता कोई निजी कृत्य कर रही नहीं थी, जिससे उनकी गोपनीयता में दखल दिया गया हो। इस आधार पर अदालत ने आरोपी को आरोपमुक्त कर दिया।
354C IPC की व्याख्या
धारा 354C IPC में वॉयरिज्म को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला को निजी कार्य करते देखता है या उसकी तस्वीर बनाता है, तब यह अपराध बनता है, बशर्ते उस महिला को देखा न जाने की अपेक्षा हो। इस मामले में शिकायतकर्ता किसी निजी कार्य में नहीं थी, इसलिए अपराध साबित नहीं हुआ।
मंशा के आधार पर तय होगा अपराध
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता ने कहा कि सार्वजनिक जगह पर फोटो या वीडियो बनाना अपराध नहीं है। कोर्ट तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर यह देखेगा कि फोटो या वीडियो लेने वाले की मंशा क्या थी और क्या वह आपराधिक थी। सार्वजनिक जगह पर सीसीटीवी भी लगातार रिकॉर्ड करता है, इसलिए केस-टू-केस आधार पर फैसला किया जाएगा।