प्राइवेट पार्ट छूना और पजामे का नाड़ा खींचना रेप की कोशिश नहीं…
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला
6 days ago Written By: Ashwani Tiwari
Allahabad High Court: सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को पूरी तरह रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पीड़िता के स्तन को छूना और पायजामे की डोरी तोड़ने जैसी हरकत को रेप या रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट का यह फैसला 20 मार्च 2025 को आया था, जिस पर कई कानूनी विशेषज्ञ और सामाजिक संगठनों ने सवाल उठाए थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि इस केस में IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत ही सुनवाई होगी। कोर्ट ने यौन अपराधों से जुड़े मामलों, खासकर जब पीड़ित बच्चे हों, ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए नए दिशा-निर्देश बनाने की बात भी कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश खारिज किया चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मीडिया इनपुट के आधार पर कहा कि हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था। बेंच ने स्पष्ट किया कि यह मामला गंभीर अपराधों की श्रेणी में आता है और इस पर रेप व रेप की कोशिश वाली धाराओं में ही सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायालयों को शब्दों का चयन और फैसले की भाषा बेहद सावधानी से करनी चाहिए।
सुनवाई में वकीलों ने सामने रखे कई उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट शोभा गुप्ता ने कहा कि यह अकेला मामला नहीं है। कई बार अलग-अलग हाईकोर्ट ऐसी टिप्पणियां कर चुके हैं, जो पीड़ितों पर सवाल उठाती हैं। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पुराने केस में यहां तक कह दिया था कि अगर महिला नशे में किसी के घर जाती है तो वह मुसीबत खुद बुला रही है। एक अन्य वकील ने बताया कि केरल की एक सेशन कोर्ट में बंद कमरे में सुनवाई के दौरान विक्टिम से असहज और बार-बार परेशान करने वाले सवाल पूछे गए थे।
सुप्रीम कोर्ट जल्द बनाएगा नई गाइडलाइंस इन सभी घटनाओं का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों की सुनवाई के लिए जल्द विशेष गाइडलाइंस तैयार की जाएंगी, ताकि इस तरह के मामलों में पीड़ितों को अनावश्यक मानसिक तनाव न झेलना पड़े।
कासगंज केस: जिस विवादित बयान से शुरू हुआ मामला यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज का है। साल 2021 में एक नाबालिग लड़की के साथ बदसलूकी हुई थी। लड़की की मां ने आरोप लगाया कि पवन, अशोक और आकाश नाम के तीन लोगों ने रास्ते में उनकी बेटी को रोककर उसके साथ छेड़छाड़ की, प्राइवेट पार्ट्स को छुआ, उसे पुल के नीचे घसीटा और पायजामे की डोरी तक तोड़ दी। स्पेशल कोर्ट ने पवन और आकाश पर IPC 376 और POCSO एक्ट की धारा 18 लगाई, जबकि अशोक पर धारा 504 और 506। यह मामला हाईकोर्ट में गया और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि इसे रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता। उन्होंने इसे IPC 354B और POCSO की धारा 9 और 10 के तहत दर्ज करने का आदेश दिया। इस फैसले की व्यापक आलोचना हुई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुद हस्तक्षेप किया और हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया।