बंगाली बोलने की वजह से महिला को भेजा गया बांग्लादेश, SC ने सरकार से मांगा जवाब
जानें पूरी बात
1 months ago
Written By: Ashwani Tiwari
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि अलग-अलग राज्यों में पश्चिम बंगाल के बंगाली बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को इस शक में हिरासत में लिया जा रहा है कि वे बांग्लादेशी नागरिक हैं। शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने कहा कि देश में अवैध घुसपैठ की समस्या है, लेकिन क्या किसी भाषा को बोलने के आधार पर ही किसी को विदेशी माना जा सकता है, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।
याचिका का विवरण और आरोप
यह याचिका पश्चिम बंगाल माइग्रेंट वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड और इसके चेयरमैन TMC सांसद समीरुल इस्लाम ने दायर की थी। याचिका में मांग की गई है कि मजदूरों की नागरिकता निर्धारित किए बिना उन्हें हिरासत में न लिया जाए और न ही किसी अन्य देश में भेजा जाए। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि एक महिला को केवल इसलिए बांग्लादेश भेज दिया गया क्योंकि वह बंगाली बोलती थीं। उन्होंने बताया कि बिना कोर्ट या किसी आधिकारिक आदेश के किसी को बाहर भेजना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस याचिका पर आपत्ति जताई कि प्रभावित व्यक्ति खुद कोर्ट में नहीं आए और केवल संगठन के माध्यम से मामला उठाया गया। उन्होंने कहा कि भारत अवैध प्रवासियों के लिए दुनिया की राजधानी नहीं है और कुछ संगठन और सरकारें इन्हीं प्रवासियों के सहारे राजनीति कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वास्तविक प्रभावित लोगों को सामने आकर अपनी वैधता साबित करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
जस्टिस बागची ने कहा कि सीमा पार करते समय सुरक्षा बल रोक सकते हैं, लेकिन भारतीय सीमा के भीतर किसी की नागरिकता तय करने के लिए एक उचित प्रक्रिया जरूरी है। उन्होंने केंद्र से स्पष्ट जवाब मांगा और पंजाब और बंगाल जैसी सीमाओं वाले क्षेत्रों में भाषा के आधार पर किसी को विदेशी मानने की स्थिति पर चिंता जताई।