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रावण को क्यों माना जाता है विद्वान और शिव भक्त, जानें भारत-श्रीलंका में उसकी पूजा की परंपरा

25 days ago
Written By: Ashwani Tiwari

Ravana worship:  भारतीय पौराणिक कथाओं में रावण का नाम एक खलनायक के रूप में लिया जाता है, लेकिन उसके जीवन की कहानियां इससे कहीं अधिक जटिल और दिलचस्प हैं। दशहरे के दिन रावण दहन होता है, लेकिन सवाल यह भी है कि उसने खलनायक की भूमिका क्यों निभाई माना जाता है कि अच्छाई और बुराई के बीच संतुलन बनाने के लिए रावण ने यह मार्ग चुना। यही वजह है कि आज भी दुनिया के कई हिस्सों में उसकी पूजा होती है। रावण का अहंकार और अधर्म उसका नकारात्मक पक्ष था, लेकिन उसकी विद्वता, शिव भक्ति और एक महान राजा के रूप में उसकी भूमिका को भी याद किया जाता है।

रावण का जन्म और वंश
रावण, ऋषि पुलस्त्य के पौत्र और ऋषि विश्रवण व असुर कन्या कैकसी के पुत्र थे। इसलिए उसे आधा असुर और आधा ब्राह्मण माना जाता है। रामायण में उसे भगवान राम का सर्वोच्च प्रतिद्वंदी और लंका का शक्तिशाली राजा बताया गया है। हालांकि, उसका जन्म दस सिरों के साथ नहीं हुआ था।

शिव भक्त और महान विद्वान
रावण भगवान शिव का परम भक्त था। वह ज्योतिष और चिकित्सा शास्त्र का ज्ञाता, संगीत में निपुण और एक उत्कृष्ट वीणा वादक था। उसने रावण संहिता और अर्क प्रकाशम् जैसी पुस्तकें लिखीं। कहा जाता है कि उसके पास पुष्पक विमान था और तंत्र विद्या में उसकी गहरी पकड़ थी।

क्यों मिला दशानन का नाम
रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर बार-बार अर्पित किया और हर बार नया सिर उग आया। इस प्रकार उसे दस सिर मिले और वह दशानन कहलाया। उसके दस सिर शास्त्रों और वेदों के प्रतीक भी माने जाते हैं। रावण 64 कलाओं और शस्त्र विद्या में पारंगत था। उसका लिखा शिव तांडव स्तोत्र आज भी गाया जाता है।

रावण के दस सिर और भावनाएं
एक मान्यता के अनुसार उसके दस सिर दस भावनाओं का प्रतीक थे काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, मात्सर्य, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। बुद्धि सर्वोच्च थी, लेकिन अन्य भावनाएं उसके विनाश का कारण बनीं। राजा महाबली की सलाह के बावजूद रावण अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाया। यही उसकी पराजय और लंका के विनाश का कारण बना।

ज्ञान का सम्मान और राम की दृष्टि
कथाओं के अनुसार भगवान राम ने भी रावण के ज्ञान का सम्मान किया। युद्ध के अंतिम समय उन्होंने लक्ष्मण को रावण से नीति और राजनीति का ज्ञान लेने भेजा था। श्रीलंका के कुछ समुदाय आज भी उसे एक महान और न्यायप्रिय राजा मानते हैं, जिसने लंका को समृद्ध और उन्नत बनाया।

कहां होती है रावण की पूजा
भारत में कई जगहों पर रावण की पूजा होती है। मंदसौर के लोग उसे दामाद मानकर रावण दहन नहीं करते। राजस्थान के मंडोर में भी उसकी पूजा होती है। कानपुर और विदिशा में रावण को समर्पित मंदिर मौजूद हैं, जहां उसे शिव भक्त और महापंडित के रूप में याद किया जाता है।

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