पुतिन का भारत दौरा: ऊर्जा व कूटनीति में नई समझ,
पश्चिम की निगाहें और भारत का रुख अहम
8 days ago Written By: Aniket Prajapati
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित कर दिया है। नई दिल्ली और मॉस्को के बीच इस यात्रा में कई अहम समझौतों और संकेतों का आदान-प्रदान हुआ। पुतिन ने यात्रा के दौरान स्पष्ट संदेश दिया कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस भारत के लिए विश्वसनीय ऊर्जा सप्लायर बना रहना चाहता है। पश्चिमी देशों और मीडिया ने भी इस दौरे को रूस की आर्थिक रणनीति की सफलता के रूप में देखा है। अब यह देखना बाकी है कि भविष्य में भारत किस तरह का रुख अपनाता है, खासकर अमेरिकी टैरिफ दबाव और यूरोपीय नीतियों के बीच।
पुतिन ने संदेश दिया: भारत के लिए ऊर्जा सप्लायर बने रहने को तैयार
पुतिन के दौरे का एक प्रमुख संदेश ऊर्जा आपूर्ति को लेकर था। रूस ने कहा कि वह भारत को ऊर्जा की विश्वसनीय आपूर्ति जारी रखेगा। पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच यह स्पष्ट संकेत माना जा रहा है कि रूस अपना वैकेंसी यूरोप के अलावा भारत और चीन जैसे बड़े खरीदारों के जरिए भरना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति रूस की अंतरराष्ट्रीय आर्थिक उपस्थिति बनाए रखने की कोशिश है।
पश्चिमी आकलन और विशेषज्ञ की राय
रूस मामलों के जानकार अमिताभ सिंह के अनुसार पश्चिमी मीडिया इसे रूस की आर्थिक जीत बता रहा है। वे कहते हैं कि पहले रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा खरीदार यूरोप माना जाता था, लेकिन अब चीन और भारत बड़े खरीदार बन चुके हैं। आगे जब यूक्रेन युद्ध थमेगा और प्रतिबंध हटेंगे तब भी पश्चिमी देश रूस से अचानक भारी मात्रा में खरीदारी शुरू नहीं करेंगे। पुतिन ने अपनी बात रख दी और अब गेंद भारत के पाले में है, भारत को तय करना होगा कि वह अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक दबावों के बीच किस तरह की नीति अपनाएगा।
चीन, मीडिया और भारत का संतुलित रुख
चीनी मीडिया ने भी इस दौरे को नज़रों से देखा और ग्लोबल टाइम्स ने पुतिन के उस इंटरव्यू का जिक्र किया जिसमें उन्होंने चीन और भारत को करीबी दोस्त बताया। वहीं भारत ने यूक्रेन युद्ध पर संतुलित रुख दिखाया प्रधानमंत्री मोदी ने शांति प्रयासों का समर्थन किया पर दोनों देशों के साझा बयान में यूक्रेन का स्पष्ट जिक्र नहीं था। इससे संकेत मिलता है कि भारत ने दूरी भी बनाए रखी।
रूस अकेला नहीं, दोनों पक्षों को हासिल हुआ कुछ न कुछ
पुतिन की यह यात्रा यह दिखाने में सफल रही कि रूस पूरी तरह अकेला नहीं है। भारत ने पारंपरिक मित्रता संभाली और भविष्य में ईयू-डील जैसे मामलों में संतुलन बनाये रखने की कोशिश की। दोनों देशों को इस दौरे से वही मिला जो वे चाहते थे रूस को वैकल्पिक बाजारों का भरोसा और भारत को ऊर्जा तथा कूटनीतिक संतुलन की सुविधा। अब आगे का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि वैश्विक आर्थिक और राजनयिक दबाव किस दिशा में बदलते हैं।