मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस: 18 साल बाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला,
11 दोषियों को किया बरी
5 days ago
Written By: NEWS DESK
मुंबई 18 साल पुराने बहुचर्चित मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एक अहम और चौंकाने वाला फैसला सुनाते हुए 11 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है। हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 12 आरोपियों को दोषी करार देते हुए पांच को फांसी और सात को उम्रकैद की सज़ा दी गई थी।
मामला साबित करने में विफल रहा विपक्ष
न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस.जी. चांडक की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है। यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने यह अपराध किया है।” इसके साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि वह निचली अदालत द्वारा सुनाई गई किसी भी सजा की पुष्टि नहीं करती और सभी 11 अभियुक्तों को बरी किया जाता है। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यदि आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाए।
क्या था मामला?
दरअसल 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में शाम के व्यस्त समय के दौरान महज 11 मिनट में सात सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इन धमाकों में 189 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 800 से अधिक यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह हमला देश की आर्थिक राजधानी में उस वक्त हुआ जब ट्रेनों में भीड़ अपने चरम पर होती है।
इस मामले में महाराष्ट्र एटीएस ने जांच कर 13 लोगों को आरोपी बनाया था। इनमें से एक आरोपी की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी, जबकि शेष 12 पर मुकदमा चला। साल 2015 में मुंबई की विशेष मकोका अदालत ने इनमें से 12 को दोषी करार दिया। पांच अभियुक्तों मोहम्मद फैसल शेख, एहतशाम सिद्धीकी, नावेद हुसैन खान, आसिफ खान और कमल अंसारी को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी, जबकि सात को उम्रकैद दी गई थी। कमल अंसारी की 2022 में नागपुर जेल में कोरोना संक्रमण के चलते मृत्यु हो गई थी।
कोर्ट में क्या हुआ?
दरअसल सभी आरोपियों ने सत्र न्यायालय के फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस साल जनवरी में इस अपील की अंतिम सुनवाई पूरी हुई, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सोमवार को सुनाए गए फैसले में अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए साक्ष्यों और गवाहियों को "अपर्याप्त और अविश्वसनीय" बताया। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस बात के कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं कि इन आरोपियों की संलिप्तता सीधी तौर पर इन विस्फोटों में थी।
जेल में बिताए गए 18 साल
इन आरोपियों को नासिक, येरवडा और नागपुर की विभिन्न जेलों में रखा गया था। अब जब हाई कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया है, तो यह सवाल भी उठने लगा है कि जिन लोगों ने 18 साल जेल में बिताए, उनका वह समय कौन लौटाएगा? वहीं इस फैसले ने महाराष्ट्र एटीएस की जांच प्रक्रिया और सत्र न्यायालय के निर्णयों को कठघरे में ला खड़ा किया है। साथ ही यह भी सवाल उठा है कि क्या जांच एजेंसियों ने मामले में जल्दबाज़ी या दबाव में काम किया?
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
हालांकि इस फैसले के बाद बरी हुए आरोपियों और उनके परिजनों के चेहरों पर राहत ज़रूर है, लेकिन धमाकों में मारे गए लोगों के परिजन स्तब्ध हैं। कई परिवारों ने इस निर्णय पर दुख और असंतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि अगर ये लोग दोषी नहीं थे, तो असली गुनहगार कौन है और वो आज़ाद क्यों घूम रहा है? हालांकि इस मामले में अभियोजन पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प तलाश सकता है।