10 साल का बच्चा मोबाइल न मिलने पर बना मौत का शिकार,
हर माता-पिता पढ़ें ये रिपोर्ट
27 days ago Written By: Ashwani Tiwari
आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले से एक ऐसी खबर आई है जिसने हर माता-पिता को सोचने पर मजबूर कर दिया है। मंगलवार, 30 सितंबर को 10 साल के पवन की ज़िंदगी मोबाइल फोन की लत के चलते खत्म हो गई। दशहरे की छुट्टियों में वह लगातार मोबाइल पर खेल रहा था। जब माता-पिता शेखर और शारदा ने उसे समझाया और मोबाइल छीन लिया, तो वह नाराज़ होकर बाथरूम में चला गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। कुछ देर बाद जब दरवाज़ा नहीं खुला, तो माता-पिता ने उसे तोड़ा। सामने का दृश्य किसी भी अभिभावक की रूह कंपा देने वाला था, क्योंकि पवन ने खुदकुशी कर ली थी।
घटना का असर और बढ़ती चिंता पवन को तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। घर में मातम और सवाल ही सवाल हैं क्या एक मोबाइल फोन इतनी बड़ी कीमत मांग सकता है। यह घटना पहली नहीं है। मोबाइल फोन की लत के कारण देशभर में कई बच्चों की जान जा चुकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ओडिशा के केओंझर में भी एक 10 साल के बच्चे ने मोबाइल विवाद के बाद जान दी थी। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 2019-2022 के बीच केरल में कम से कम 25 बच्चों ने इंटरनेट या गेम की लत के कारण आत्महत्या की।
आंकड़े और खतरनाक संकेत भारत में बच्चों और किशोरों की आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है। 2021 में लगभग 5,075 पुरुष और 5,655 महिला (बच्चे/किशोर) मौतें दर्ज की गईं। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के शोध के अनुसार, भारत में स्कूली बच्चों और किशोरों में मध्यम स्तर की Problematic Internet Use (PIU) लगभग 21.5% और गंभीर स्तर 2.6% पाया गया है। एक अन्य अध्ययन में मोबाइल एडिक्शन की दर 33% पाई गई यानी हर तीसरे किशोर में यह संकेत हैं। Internet Addiction Disorder से जुड़े अध्ययन बताते हैं कि भारत में 24.6% किशोर इस समस्या के दायरे में हैं। भारत की समग्र आत्महत्या दर 12 प्रति 1,00,000 है, जो WHO के औसत से अधिक मानी जाती है।
मोबाइल एडिक्शन: लक्षण और समाधान मनोविज्ञान में इसे इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर या मोबाइल एडिक्शन सिंड्रोम कहा जाता है। बच्चा धीरे-धीरे गेम्स और सोशल मीडिया की दुनिया में इतना खो जाता है कि असल जीवन से उसका जुड़ाव कमजोर हो जाता है। लक्षणों में घंटों मोबाइल में डूबे रहना, खाने-सोने का समय बिगड़ना, पढ़ाई-खेलकूद में रुचि कम होना और मोबाइल छीनने पर चिड़चिड़ापन या आक्रामकता शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका हल केवल मोबाइल छीनना नहीं, बल्कि बच्चों के साथ समय बिताना, बाहर खेलने-पढ़ने की आदत डालना, स्क्रीन टाइम के नियम बनाना और जरूरत पड़ने पर काउंसलिंग या थेरेपी कराना है। मनोवैज्ञानिक डॉ. वाणी रेड्डी कहती हैं कि माता-पिता को डांटने के बजाय बच्चों से बातचीत करनी चाहिए। प्यार और संवाद ही उन्हें इस जाल से बाहर ला सकता है।