"भारत कोई धर्मशाला नहीं"-
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की श्रीलंकाई नागरिक की याचिका
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
India Refugee Policy: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक द्वारा दायर शरण याचिका को खारिज कर सख्त टिप्पणी करते हुए कह है कि, “भारत कोई धर्मशाला नहीं है। अदालत ने कहा कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश के सामने पहले से ही सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ हैं। ऐसे में दुनियाभर से आने वाले शरणार्थियों को भारत में शरण देना व्यावहारिक नहीं है।”
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ की थी राहत की मांग
दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने श्रीलंकाई नागरिक को यूएपीए (UAPA) मामले में सात साल की सजा पूरी होते ही देश छोड़ने का आदेश दिया था। इसी आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसकी ओर से वकीलों ने दलील दी कि वह व्यक्ति वीजा लेकर भारत आया था और श्रीलंका में उसकी जान को गंभीर खतरा है।
एलटीटीई से जुड़ाव बना निर्वासन का आधार
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसने 2009 में श्रीलंका के गृहयुद्ध में एलटीटीई (LTTE) के सदस्य के तौर पर भाग लिया था। इसी कारण श्रीलंका सरकार ने उसे ‘ब्लैक-गजटेड’ यानी वांछित अपराधी घोषित किया है। उसका दावा था कि यदि उसे वापस भेजा गया, तो उसे गिरफ्तारी और यातना का सामना करना पड़ सकता है।
कोर्ट ने नहीं मानी दलील
इस दौरान शरणार्थी ने यह भी बताया कि उसकी पत्नी और बेटा भारत में रह रहे हैं। पत्नी गंभीर बीमारियों से पीड़ित है और बेटा जन्मजात हृदय रोग से जूझ रहा है। वह स्वयं पिछले तीन वर्षों से हिरासत में है, लेकिन अब तक निर्वासन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इन आधारों पर राहत देने से इनकार कर दिया।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे फैसले
हालाँकि, यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की याचिका को खारिज किया हो। हाल ही में अदालत ने रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन के मामले में भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का यह रुख संकेत देता है कि वह अब केवल मानवीय आधार पर शरण देने की नीति से आगे बढ़कर देश की आंतरिक स्थिति को प्राथमिकता दे रही है।