गांधी भाषण का हरदोई की महिलाओं पर पड़ा था अद्भुत प्रभाव,
हजारों महिलाओं ने दान किये थे अपने गहने
1 months ago
Written By: anjali
15 अगस्त 2025 — आज़ादी का 79वाँ वर्ष। पूरा देश स्वतंत्रता दिवस के उल्लास में डूबा है, लेकिन इस दिन को पूरी तरह समझने के लिए हमें उन मिट्टी के कणों तक जाना होगा, जिन्होंने अपने लहू और त्याग से इस आज़ादी को सींचा। हरदोई ऐसी ही एक पावन धरती है, जहाँ की वीरगाथाएँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं। यह वह भूमि है, जहाँ महात्मा गांधी समेत अनेक राष्ट्रीय नेताओं के कदम पड़े और जहाँ की जनता ने न सिर्फ़ स्वतंत्रता का सपना देखा, बल्कि उसे साकार करने के लिए तन-मन-धन अर्पित कर दिया।
गांधी जी का आगमन और अभूतपूर्व उत्साह
11 अक्टूबर 1929 का दिन हरदोई के इतिहास में अमर हो गया। इसी दिन महात्मा गांधी का इस पावन भूमि पर आगमन हुआ। उनके स्वागत की तैयारियाँ कई दिनों से चल रही थीं और नगर का वातावरण देशभक्ति के गीतों से गूंज रहा था। टाउन हाल मैदान — जिसे आज गांधी भवन के नाम से जाना जाता है — में एक विशाल जनसभा आयोजित की गई, जिसमें लगभग पाँच हज़ार स्त्री-पुरुष एकत्र हुए।
गांधी जी के प्रभावशाली भाषण ने विशेषकर महिलाओं के हृदय को गहराई से छू लिया। सभा समाप्त होते-होते अनेक महिलाएँ अपने गहने उतारकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए दान करने लगीं। इन दानदाताओं में बेरूआ स्टेट की रानियां — रानी विद्या देवी, रानी लक्ष्मी देवी और तारा देवी — भी शामिल थीं। उन्होंने न केवल अपने आभूषण दान किए, बल्कि विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर जीवनभर खादी पहनने का संकल्प लिया और विदेशी कपड़ों की होली जला दी।
खादी आंदोलन और जनजागरण
गांधी जी के जाने के बाद आचार्य कृपलानी हरदोई पहुँचे। उनके प्रयासों से मल्लावां में देश-प्रसिद्ध खादी आश्रम स्थापित हुआ और हरदोई में गांधी भवन का निर्माण हुआ। जल्द ही पूरे जिले में चरखा चलने लगा, और मल्लावां के आस-पास के क्षेत्रों में तो दस लाख तक चरखे सक्रिय हो गए। गाँव-गाँव में गांधी टोपी लगाए स्वयंसेवक स्वतंत्रता का संदेश फैलाते। बच्चों की जुबान पर “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा” गीत गूंजने लगा।
दमन के बावजूद अडिग संकल्प
अंग्रेजी हुकूमत के दमन ने भी हरदोई की जनता का जोश कम नहीं किया। गांधी टोपी या तिरंगा झंडा लेकर निकलने वालों को पुलिस पकड़कर मारती, मुर्गा बनाती, यातनाएं देती — लेकिन स्वतंत्रता की ललक और भी प्रबल हो जाती। यह देशभक्ति का ज्वार सिर्फ शहर तक सीमित नहीं था, बल्कि ग्रामीण अंचल में भी लहर की तरह फैल गया।
कटियारी क्षेत्र में तो स्वतंत्रता सेनानियों के आग्रह पर पुलिस इंस्पेक्टर ठाकुर भभूती सिंह ने अपनी सरकारी नौकरी तक त्याग दी और तन, मन, धन से आंदोलन में कूद पड़े। नमक सत्याग्रह के दौरान हरदोई ने विशेष भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन को स्पष्ट संदेश दिया कि अब आज़ादी का सूरज उगने वाला है।
हरदोई — त्याग और बलिदान की धरती
हरदोई की इन गाथाओं से स्पष्ट है कि यहाँ के लोग केवल आज़ादी के सपने देखने वाले नहीं थे, बल्कि उसके लिए हर बलिदान देने को तैयार थे। गांधी जी के आगमन से लेकर खादी आंदोलन, जनजागरण, विदेशी वस्त्र बहिष्कार और नमक सत्याग्रह तक — हरदोई का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय है। यह धरती आज भी अपने वीर पूर्वजों की गाथाओं से प्रेरणा देती है।