10 साल में बदल गया जर्मनी: ईसाइयों के देश में मुसलमानों की बढ़ती ताकत,
अफ़डी को मिला बड़ा सहारा
3 days ago
Written By: Ashwani Tiwari
Germany Refugee Crisis: कभी यूरोप की सबसे बड़ी ताकत माने जाने वाले जर्मनी में पिछले एक दशक में भारी बदलाव देखने को मिला है। 2015 में तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे युद्धग्रस्त देशों से आने वाले लाखों शरणार्थियों के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए थे। उस समय इसे स्वागत संस्कृति कहा गया और पूरी दुनिया ने मर्केल के इस कदम की सराहना की। लेकिन महज दस साल बाद यह फैसला जर्मनी की राजनीति, समाज और संस्कृति के लिए बड़ा मोड़ साबित हुआ। अब यहां आप्रवासन-विरोधी भावनाएं और राजनीतिक उथल-पुथल तेज हो गई हैं।
मर्केल का फैसला और शरणार्थियों का आगमन
वर्ष 2015 और 2016 के बीच करीब 11.64 लाख लोगों ने जर्मनी में शरण के लिए आवेदन किया। 2015 से 2024 तक यह आंकड़ा 26 लाख तक पहुंच गया। अधिकांश लोग सीरिया, अफगानिस्तान और इराक से आए थे। मर्केल ने यह कदम मानवीय आधार पर उठाया, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसमें व्यावहारिकता भी शामिल थी। हिल्डेशाइम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हानेस शमैन का कहना है कि मर्केल यूरोप की शरण प्रणाली को स्थिर करना चाहती थीं, क्योंकि बाकी देश तैयार नहीं थे। लेकिन इस निर्णय ने अप्रत्याशित चुनौतियां खड़ी कर दीं।
स्वागत संस्कृति से असंतोष तक
शुरुआत में जर्मनी के लोग शरणार्थियों के समर्थन में सड़कों पर उतरे, लेकिन जल्द ही हालात बदले। 2016 की नववर्ष की पूर्व संध्या पर कोलोन में महिलाओं पर हुए सामूहिक हमलों के बाद माहौल बिगड़ गया और शरणार्थियों को दोषी ठहराया गया। इसी घटना से दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (AfD) को मजबूती मिली। यह पार्टी अब जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी ताकत बन चुकी है और शरणार्थियों के विरोध को मुख्यधारा की राजनीति में ला चुकी है। 2015 में केवल 38% लोग शरणार्थियों की संख्या घटाने के पक्ष में थे, लेकिन 2025 तक यह संख्या 68% तक पहुंच गई।
नई नीतियां और राजनीतिक उथल-पुथल
मर्केल के बाद अब CDU नेता और वर्तमान चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने शरणार्थी नीति में सख्ती शुरू की है। उन्होंने सीमा पर गार्ड तैनात करने और शरणार्थियों को रोकने के कदम उठाए, हालांकि अदालत ने इन्हें गैरकानूनी बताया। वहीं, AfD की नेता एलिस वाइडेल ने मांग की कि सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश वापस भेजा जाए। इससे साफ है कि आप्रवासन-विरोधी भावनाएं अब राजनीतिक केंद्र में आ चुकी हैं।
शरणार्थियों का अनुभव और भविष्य की चिंता
सीरिया से आए अनस मोदमानी जैसे लोग जर्मनी में नई जिंदगी बसा चुके हैं। वह आईटी पेशेवर हैं और सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। 2015 में मर्केल के साथ उनकी सेल्फी चर्चित हुई थी। लेकिन अब उनका कहना है कि माहौल बदल चुका है और कई बार उन्हें लगता है कि उन्हें वापस भेजा जा सकता है।
जर्मनी का भविष्य क्या होगा
विशेषज्ञों का मानना है कि शरण आवेदनों की संख्या कम हो रही है, लेकिन सामाजिक तनाव बरकरार है। AfD का उदय और आप्रवासन-विरोधी सोच यह साबित करती है कि मर्केल की दरियादिली अब अतीत की बात बन चुकी है। जर्मनी अब ऐसे मोड़ पर है जहां उसे मानवीय मूल्यों और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाना होगा। यह संकट केवल जर्मनी की नहीं, बल्कि पूरे यूरोप की नीतियों को प्रभावित कर रहा है।