14 बच्चों की MP-महाराष्ट्र में हुई मौत, वजह बनी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम,
जानिए क्या है ये बीमारी
26 days ago Written By: Ashwani Tiwari
MP News: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के नागपुर से एक बेहद चिंताजनक खबर सामने आई है। बीते एक से सवा महीने में यहां कुल 14 बच्चों की मौत हो गई है। इनमें से 13 मौतें छिंदवाड़ा जिले में और 1 नागपुर शहर में हुई हैं। सभी बच्चों की उम्र 15 साल से कम थी। डॉक्टर्स का अनुमान है कि यह मौतें एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार की वजह से हो सकती हैं। हालांकि, असली वजह का पता लगाने के लिए जांच जारी है।
बच्चों की हालत और लक्षण डॉक्टर्स के मुताबिक, जब इन बच्चों को अस्पताल लाया गया तो सभी को तेज बुखार था। कई बच्चों की तबीयत कुछ ही घंटों में बिगड़ गई और वे 24 घंटे के अंदर बेहोश हो गए। ज्यादातर बच्चों की किडनी ने काम करना बंद कर दिया, जिसके बाद उन्हें डायलिसिस पर रखा गया। कुछ बच्चों को वेंटिलेटर सपोर्ट भी दिया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। छिंदवाड़ा जिले में परासिया ब्लॉक को हाई अलर्ट जोन घोषित कर दिया गया है।
जांच में जुटी विशेषज्ञ टीमें अभी तक हुई जांचों में किसी पहचानने योग्य वायरस या बैक्टीरिया का पता नहीं चला है। पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और NCDC की टीमें जांच के लिए मौके पर भेजी गई हैं। नागपुर के अस्पतालों में अब भी ऐसे लक्षणों वाले बच्चे भर्ती हो रहे हैं, जिस कारण आसपास के जिलों में भी सतर्कता बढ़ा दी गई है।
AES और एन्सेफैलोपैथी क्या है मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ मामलों को अब इंसेफेलाइटिस के बजाय एक्यूट एन्सेफैलोपैथी की श्रेणी में रखा गया है। इंसेफेलाइटिस में दिमाग में सूजन होती है, जो आमतौर पर वायरस या बैक्टीरिया की वजह से होती है। वहीं एन्सेफैलोपैथी दिमाग पर असर डालने वाले टॉक्सिन्स या हानिकारक तत्वों से भी हो सकती है। गुरुग्राम स्थित मैरिंगो एशिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो एंड स्पाइन के चेयरमैन डॉ. प्रवीण गुप्ता बताते हैं कि AES को आम भाषा में चमकी बुखार कहते हैं। इसके लक्षणों में अचानक तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, भ्रम की स्थिति, दौरे पड़ना, बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत और गर्दन में जकड़न शामिल हैं। गंभीर हालात में मरीज कोमा में जा सकता है या लकवा मार सकता है।
इलाज और बचाव AES का सबसे बड़ा कारण जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस होता है। इसके अलावा डेंगू, हर्पीज, फ्लू और अन्य वायरस भी कारण हो सकते हैं। इसके इलाज में दवाओं के साथ दिमाग की सूजन कम करने की कोशिश की जाती है। डॉक्टर सीटी स्कैन, एमआरआई, स्पाइनल टैप और EEG जैसे टेस्ट करते हैं। AES से बचाव के लिए कोई खास वैक्सीन नहीं है, लेकिन जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस के खिलाफ वैक्सीन उपलब्ध है। बच्चों को 9 महीने और 16-24 महीने की उम्र में इसकी खुराक दी जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि समय रहते इलाज शुरू कर दिया जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है। देर होने पर जान जाने का खतरा रहता है।