क्या अब 5 साल से अधिक सजा वाले CM-PM का छिन जाएगा पद..!
सदन में संविधान संशोधन पर संग्राम…
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नए संविधान संशोधन विधेयक ने राजनीतिक गलियारों में गहरी हलचल पैदा कर दी है। दिलचस्प है कि जहां इंदिरा गांधी सरकार का 41वां संशोधन विधेयक राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपालों को आजीवन फौजदारी मामलों से पूर्ण प्रतिरक्षा देने का प्रयास था, वहीं मौजूदा सरकार का प्रस्ताव ठीक उलटी दिशा में जाता दिखता है। यह विधेयक नेताओं को सुरक्षा नहीं बल्कि जवाबदेही के दायरे में लाने की कोशिश करता है।
क्या है प्रस्ताव ?
पहली नज़र में यह विचार आकर्षक लगता है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोग संदेह से परे होने चाहिएं। विधेयक के मुताबिक, यदि कोई मंत्री, चाहे मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री, पांच साल या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराध में गिरफ्तार होता है और लगातार 30 दिन की हिरासत में रहता है, तो उसकी स्वचालित बर्खास्तगी हो जाएगी। इस्तीफा न देने पर भी पद स्वतः छिन जाएगा। हालांकि, अगर बाद में वह व्यक्ति रिहा होता है, तो पद पर वापसी का रास्ता खुला रहेगा। लेकिन इस आकर्षक प्रस्ताव के भीतर कई गंभीर पेच भी हैं।
पहला मुद्दा: अपराधों का दायरा बहुत व्यापक
विधेयक कहता है कि यह प्रावधान “किसी भी कानून के तहत” लागू होगा, जहां अधिकतम सज़ा पांच साल या उससे अधिक है। विदि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के शोध के मुताबिक, भारत में ऐसे 2000 से ज्यादा अपराध हैं। इनमें से कुछ संगठित अपराध, मानव तस्करी जैसे गंभीर मामले हैं, लेकिन कई अपेक्षाकृत छोटे अपराध भी इस श्रेणी में आ जाते हैं, जैसे किसी अधिकारी के कार्य में बाधा डालना। नतीजा यह हो सकता है कि किसी मंत्री की बर्खास्तगी गंभीर अपराध नहीं बल्कि छोटे आरोपों पर भी हो सकती है।
दूसरा मुद्दा: ‘निर्दोष जब तक दोषी साबित न हो’ की अवधारणा पर चोट
विधेयक की पूरी व्यवस्था गिरफ्तारी और हिरासत पर आधारित है, न कि दोष सिद्धि पर। भारतीय न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि जब तक अदालत दोष सिद्ध न करे, व्यक्ति निर्दोष माना जाता है। हाल की राजनीति बताती है कि कई विपक्षी नेताओं को लंबे समय तक जेल में रखा गया और बाद में सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया। इस परिस्थिति में, महज़ हिरासत के आधार पर पद छिनना राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका बढ़ा देता है।
तीसरा मुद्दा: राजनीतिक हथियार बनने का खतरा
यदि विधेयक पास हो जाता है, तो विरोधियों को राजनीतिक रूप से खत्म करने का आसान तरीका होगा, बस गिरफ्तारी और 30 दिन की हिरासत। भले ही बाद में अदालत बरी कर दे, लेकिन तब तक पद, प्रतिष्ठा और राजनीतिक गति सब कुछ खो सकता है।
बेहतर रास्ता: तेज़ न्याय, न कि जल्दबाज़ी में बर्खास्तगी
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में अदालत ने तथ्यों पर विचार करके उन्हें अस्थायी रूप से दायित्वों से रोकने का निर्देश दिया था। यही प्रक्रिया ज्यादा तार्किक और संतुलित है। इसके बजाय, गंभीर मामलों के लिए तेज़ जांच और त्वरित सुनवाई का रास्ता लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल होगा।