ट्रंप में लगाया दवा उत्पाद पर 100 प्रतिशत टैरिफ,
भारत को लग सकता है बड़ा झटका..!
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को एक ऐसा ऐलान किया जिसने वैश्विक फार्मा बाजार को हिला दिया है। ट्रंप ने कहा कि 1 अक्टूबर 2025 से अमेरिका में आयात की जाने वाली सभी ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। उनका कहना है कि केवल वही कंपनियां इस शुल्क से बच सकेंगी जो अमेरिका में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का निर्माण कार्य शुरू कर चुकी होंगी। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर साफ शब्दों में लिखा कि “आईएस बिल्डिंग” का मतलब है जमीन की खुदाई या निर्माण कार्य का आरंभ होना। यानी यदि कोई कंपनी अमेरिका में फैक्ट्री निर्माण की दिशा में ठोस कदम उठा चुकी है तो उसे राहत मिलेगी, अन्यथा पूरा टैरिफ भरना होगा।
दवाओं से लेकर फर्नीचर तक टैरिफ की मार ट्रंप की यह घोषणा सिर्फ दवाइयों तक सीमित नहीं है। उन्होंने घरेलू और औद्योगिक वस्तुओं पर भी भारी शुल्क लगाया है। किचन कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर 50 प्रतिशत, अपहोल्स्टर्ड फर्नीचर पर 30 प्रतिशत और हेवी ट्रक्स पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है। हालांकि इस फैसले के लिए उन्होंने कोई कानूनी आधार प्रस्तुत नहीं किया, लेकिन उन्होंने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य कारणों से जरूरी बताया। ट्रंप का मानना है कि इस तरह के कदम न सिर्फ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देंगे बल्कि बजट घाटे को भी कम करेंगे।
भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर सीधा खतरा वहीं माना जा रहा है कि, भारत के लिए यह निर्णय गंभीर असर डाल सकता है। अमेरिका भारतीय दवा उद्योग का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 27.9 अरब डॉलर मूल्य की दवाइयां निर्यात की थीं, जिनमें से 31 प्रतिशत यानी 8.7 अरब डॉलर की दवाइयां अमेरिका गईं। सिर्फ 2025 की पहली छमाही में ही भारत ने अमेरिका को 3.7 अरब डॉलर मूल्य की दवाइयां निर्यात कर दी थीं। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत की दवा कंपनियां अमेरिकी बाजार पर कितनी अधिक निर्भर हैं।
जेनेरिक और बायोसिमिलर दवाओं पर अनिश्चितता फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 45 प्रतिशत जेनेरिक दवाइयां और 15 प्रतिशत बायोसिमिलर दवाइयां भारत से आती हैं। डॉ. रेड्डीज, ऑरोबिंदो फार्मा, ज़ाइडस लाइफसाइंसेज़, सन फार्मा और ग्लैंड फार्मा जैसी दिग्गज कंपनियां अपनी कुल आय का 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी बाजार से ही अर्जित करती हैं। हालांकि ट्रंप की घोषणा मुख्य रूप से ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाइयों को निशाना बनाती दिख रही है, लेकिन उद्योग जगत में इस बात की चिंता बढ़ रही है कि कहीं भविष्य में जटिल जेनेरिक और स्पेशलिटी दवाओं को भी इसके दायरे में न ला दिया जाए।
अमेरिकी उपभोक्ताओं पर संभावित दबाव भारतीय कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे पहले से ही बहुत पतले मुनाफे पर काम करती हैं। यदि उन पर अतिरिक्त लागत का बोझ पड़ा तो वे उसे सहन नहीं कर पाएंगी और अंततः उसका असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, महंगाई बढ़ेगी और दवा संकट की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। अमेरिकी बीमा कंपनियों को भी ज्यादा कीमत चुकानी होगी। इससे वहां के लाखों-करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य बजट पर दबाव पड़ना तय है।
पहले से ही टैरिफ के बोझ तले भारत भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते पहले ही तनाव में हैं। ट्रंप प्रशासन भारत से आयातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ और रूसी तेल खरीद जारी रखने पर 25 प्रतिशत पेनल्टी पहले ही लगा चुका है। अब दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ ने भारत-अमेरिका के बीच व्यापार संतुलन को और बिगाड़ने का खतरा पैदा कर दिया है।
नतीजा क्या होगा ट्रंप का यह फैसला सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक फार्मा इंडस्ट्री और अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भी बड़ी चुनौती लेकर आया है। जहां भारत की कंपनियों को अपने मुनाफे और निर्यात पर गहरी चोट लग सकती है, वहीं अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ने से आम लोगों की जेब पर भारी असर पड़ना तय है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में भारतीय फार्मा सेक्टर और अमेरिकी नीति निर्माता इस नई चुनौती का सामना किस तरह करते हैं।