तीन साल तक बिना ड्यूटी आए उतार ली सैलरी,
स्वस्थ मंत्रालय ने थमाया नोटिस
3 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जिसने न केवल स्वास्थ्य मंत्रालय को चौंका दिया है, बल्कि सरकारी सिस्टम की “लापरवाही” पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अस्पताल की बायोकेमिस्ट्री विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. मंजू सब्बरवाल पर आरोप है कि वह लगातार तीन साल तक ड्यूटी से अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहीं, जबकि इस दौरान वह कनाडा में रह रही थीं। हैरानी की बात यह है कि इतनी लंबी गैरहाजिरी के बावजूद उनका वेतन नियमित रूप से जारी रहा। अब मामला सामने आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन्हें नोटिस थमाया है, वेतन रोक दिया है और विभागाध्यक्ष के पद से भी हटा दिया गया है।
नोटिस पर डॉ. मंजू सब्बरवाल से मांगा गया जवाब
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 28 जुलाई को डॉ. मंजू को एक विस्तृत नोटिस जारी किया, जिसमें तीन साल तक ड्यूटी से गायब रहने और फिर भी वेतन लेने पर जवाब तलब किया गया। नोटिस में उनसे पूछा गया कि सरकारी कर्मचारियों के लिए निर्धारित छुट्टी नियमों का पालन न करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी अनधिकृत अनुपस्थिति को “सेवा में विराम” क्यों न माना जाए। साथ ही, तीन साल के दौरान लिए गए वेतन और भत्तों की वसूली पर भी विचार किया जा रहा है।
सोशल मीडिया प्रोफाइल में निकली “फिल्ममेकर”
इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी जांच में जुटे, तब उन्हें पता चला कि डॉ. मंजू सब्बरवाल की सोशल मीडिया प्रोफाइल पर उनका परिचय “कनाडा में रहने वाली फिल्ममेकर” के रूप में दिया गया है। यह खुलासा होने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सरकारी अस्पताल में पदस्थ रहते हुए वह कनाडा में क्या कर रही थीं और किस नियम के तहत वहां रहकर भी लगातार वेतन लेती रहीं।
एफआरओ से मांगी गई विदेश यात्राओं की रिपोर्ट
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पूरे मामले में विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRO) से भी संपर्क किया है। उनसे डॉ. मंजू की जांच अवधि के दौरान भारत आने-जाने की पूरी जानकारी मांगी गई है। मंत्रालय ने साफ किया है कि तथ्यों की पुष्टि के बाद उनके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों के अनुसार, अस्पताल प्रशासन ने एक आरोपपत्र तैयार कर लिया है, जिसे मंत्रालय को सौंपा जाएगा। इतना ही नहीं, उन्हें लगभग एक महीने पहले ही विभागाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है।
सरकारी सिस्टम पर उठे सवाल
यह मामला सरकारी अस्पतालों में प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण बन गया है। सवाल यह है कि तीन साल तक डॉ. मंजू की अनुपस्थिति किसी की नजर में क्यों नहीं आई? अस्पताल प्रबंधन ने बिना उपस्थिति जांचे इतने लंबे समय तक वेतन कैसे जारी रखा ? इस पूरे प्रकरण ने स्वास्थ्य मंत्रालय को भी सकते में डाल दिया है और अब साफ संकेत हैं कि डॉ. मंजू के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई तय है।