जादा साफ़-सफाई कराती थी पत्नी…तो पति ने मांग लिया तलाक,
कोर्ट ने 22 साल बाद दी मंजूरी
3 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
मध्य प्रदेश की जाबालपुर हाईकोर्ट ने बैतूल निवासी दंपति के लंबे समय से चले आ रहे वैवाहिक विवाद को समाप्त करते हुए तलाक की मंजूरी दे दी है। जस्टिस विशाल धगट और जस्टिस रामकुमार चौबे की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि पति-पत्नी पिछले 22 वर्षों से अलग रह रहे हैं और अब मेल-मिलाप की कोई संभावना नहीं बची है। इस स्थिति में अदालत ने विवाह को भंग करना ही न्यायोचित ठहराया। दरअसल पति ने पत्नी पर जरूरत से जादा साफाई करवाने के आरोप लगाए थे।
22 साल से अलग रह रहे थे पति-पत्नी
दरअसल, बैतूल के निरंजन अग्रवाल का विवाह नागपुर निवासी नीला के साथ 7 फरवरी 1988 को हिंदू रीति-रिवाजों से संपन्न हुआ था। प्रारंभिक वर्षों में दंपति के संबंध सामान्य रहे, लेकिन बाद में नीला ने अलग घर बसाने की जिद शुरू कर दी और उसका व्यवहार असामान्य होता चला गया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वर्ष 2003 में नीला मायके चली गई और तब से पति-पत्नी अलग रहने लगे। निरंजन अग्रवाल का आरोप था कि उनकी पत्नी मानसिक रोग स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित थीं और यह तथ्य विवाह के समय छिपाया गया था।
घर और बच्चों में असहनीय दबाव
पति ने अदालत में यह भी आरोप लगाया कि नीला की सफाई और घर के काम-काज को लेकर आदतें सामान्य दायरे से बाहर थीं। वह रोजाना घर की दीवारों से लेकर फर्श तक को धुलवाती थी और बाहर से लाई गई वस्तुओं को भी बार-बार साफ करने के लिए मजबूर करती थी। बच्चों पर भी ऐसा दबाव था कि वे सुबह छह बजे से पहले स्नान करें। निरंजन ने कहा कि नीला न तो समय पर भोजन तैयार करती थीं और न ही बच्चों के टिफिन की व्यवस्था करती थीं, जिसके कारण वे अक्सर बिना खाना खाए स्कूल चले जाते थे। इस असहनीय व्यवहार ने दंपति के बीच वैवाहिक जीवन को कठिन बना दिया था।
ट्रायल कोर्ट ने खारिज किया था तलाक का आवेदन
पति निरंजन अग्रवाल ने पहले ट्रायल कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की थी, लेकिन 13 मई 2005 को निचली अदालत ने उसका आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद निरंजन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने प्रस्तुत साक्ष्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए माना कि दोनों के बीच सहजीवन की कोई गुंजाइश नहीं बची है। लगातार 22 साल अलग रहने और पत्नी के असामान्य व्यवहार को देखते हुए अदालत ने यह मामला मानसिक क्रूरता का माना और हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक का वैध आधार बताया।
अदालत का निर्णय और वैधता
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि पति की ओर से यह तर्क पेश किया गया था कि पत्नी का व्यवहार न केवल असहनीय था बल्कि उसने वैवाहिक जीवन को कठिन बना दिया था। अदालत ने सभी सबूतों और परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद दंपति को तलाक की मंजूरी दे दी। इस अपील की पैरवी अधिवक्ता अविनाश जरगर ने की। इस निर्णय के साथ ही 22 सालों से लंबित वैवाहिक विवाद समाप्त हो गया और दोनों पक्ष अब स्वतंत्र रूप से अपने जीवन की दिशा तय कर सकते हैं।