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हाईकोर्ट के फैसले के बाद अधर में सैकड़ों छात्रों का भविष्य ! अब सुप्रीम कोर्ट में होगी अगली सुनवाई

1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के ताज़ा फैसले ने आरक्षण की राजनीति और सामाजिक न्याय की बहस को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। साबरा अहमद बनाम उत्तर प्रदेश मामले में कोर्ट ने साफ़ कहा कि जालौन, सहारनपुर, कन्नौज और आंबेडकर नगर के विशेष घटक योजना (SCP) से बने मेडिकल कॉलेजों में 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति आरक्षण लागू नहीं हो सकता। डिविजन बेंच ने भी इस फैसले की पुष्टि की, जिससे तकरीबन 100 छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है, जो यह तय करेगा कि क्या SCP के तहत बने कॉलेज 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से बाहर रखे जा सकते हैं या नहीं।

छात्रों का भविष्य दांव पर
वहीं माना जा रहा है कि इस फैसले के बाद सैकड़ों छात्रों की पढ़ाई और करियर पर संकट मंडराने लगा है। यहां कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पहले से दाखिला पाए एससी छात्रों को अन्य कॉलेजों में ट्रांसफर किया जाए। लेकिन यह व्यवस्था कितनी व्यावहारिक होगी, इस पर सवाल उठ रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस फैसले से सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे राज्यों के भी विशेष कॉलेज प्रभावित हो सकते हैं, जहां 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण लागू है।

टूटा मूलभूत सिद्धांत ?
कानूनी जानकार मानते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन कॉलेजों को सामान्य शैक्षणिक संस्थानों की तरह मानकर गलती की है। दरअसल, ये कॉलेज SCP से फंडेड हैं और अनुसूचित जातियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए थे। लेकिन कोर्ट ने सामान्य आरक्षण अधिनियम की 21 प्रतिशत सीमा को इन पर लागू कर दिया। इससे generalia specialibus non derogant यानी "विशेष प्रावधान सामान्य प्रावधान पर हावी होते हैं" का मूलभूत सिद्धांत ही टूट गया।

क्या थी संविधान सभा की मंशा ?
वहीं संविधान सभा की बहसें साफ़ करती हैं कि अनुच्छेद 46 सिर्फ औपचारिक समानता के लिए नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिए है। एस. नागप्पा और एस. मुनिस्वामी पिल्लै जैसे सदस्यों ने स्पष्ट किया था कि एससी/एसटी के लिए विशेष योजनाएं, मंत्रालय और फंड आवंटन जरूरी हैं। यही दृष्टि बाद में SCP में सामने आई, जिसमें समुदाय-विशेष के लिए फंडिंग का प्रावधान किया गया।

सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर आरक्षण का भविष्य
वहीं अब सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट किस तरह संवैधानिक व्याख्या करेगा। इंदिरा साहनी केस में यह स्पष्ट किया गया था कि असाधारण परिस्थितियों में 50 प्रतिशत की सीमा को पार किया जा सकता है। SCP से बने विशेष कॉलेज ठीक ऐसे ही "असाधारण उदाहरण" हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को पलट देता है, तो यह एससी/एसटी शिक्षा नीति और सामाजिक न्याय के लिए बड़ी राहत होगी। लेकिन अगर आदेश बरकरार रहता है, तो न सिर्फ यूपी बल्कि कई राज्यों की आरक्षण संरचना ध्वस्त हो जाएगी।

राजनीतिक असर भी गहरा
वहीं यह फैसला ऐसे समय आया है जब योगी सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में है। बीजेपी पहले ही 2024 के चुनाव में आरक्षण और संविधान को कमजोर करने के आरोपों से घिरी रही है। अब यह विवाद विपक्ष को नया हथियार देगा। कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी पार्टियां इसे सामाजिक न्याय पर हमला बताकर चुनावी मुद्दा बना सकती हैं।

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