हॉस्टल की दीवारों के पीछे छिपा धर्मांतरण का काला नेटवर्क,
स्लीपर सेल की तरह तैयार किए जा रहे थे मासूम
3 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
राजस्थान के अलवर जिले से एक ऐसा धर्मांतरण रैकेट सामने आया है जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। मासूम बच्चों के दिमाग से खेलते हुए उन्हें पढ़ाई, परवरिश और बेहतर जिंदगी का लालच देकर ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर किया जा रहा था। अलवर पुलिस की कार्रवाई में इस बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश हुआ, जिसने यह साफ कर दिया है कि धर्म परिवर्तन अब कोई मामूली सामाजिक समस्या नहीं बल्कि संगठित साजिश बन चुकी है। इस नेटवर्क के तार राजस्थान से निकलकर चेन्नई, बेंगलुरु, गुजरात और उत्तर भारत के कई जिलों तक फैले हुए हैं।
हॉस्टल की दीवारों के पीछे होता था धर्मांतरण
अलवर के एमआईए थाना क्षेत्र की सैय्यद कॉलोनी में स्थित एक ईसाई मिशनरी हॉस्टल बाहर से देखने पर बेहद साधारण लगता था, लेकिन इसके भीतर मासूमों की ज़िंदगी के साथ वर्षों से खेल खेला जा रहा था। पंद्रह साल से छोटे बच्चों को यहां लाकर कैद जैसी हालत में रखा जाता था। हॉस्टल की दीवारें दस फीट ऊंची थीं और ऊपर तारबंदी की गई थी ताकि कोई बच्चा भाग न सके और न ही बाहर की दुनिया में कोई इस सच्चाई को देख सके। बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता था, लेकिन पढ़ाई का नाम केवल दिखावा था। असली खेल तब शुरू होता था जब वे हॉस्टल लौटते, जहां उनका ब्रेनवॉश कर धीरे-धीरे धर्म परिवर्तन कराया जाता। पुलिस की छापेमारी के दौरान यह पूरा खेल उजागर हुआ। 60 से ज्यादा बच्चों को यहां रखा गया था, जिनमें से 52 को सुरक्षित बाहर निकाला गया। हैरानी की बात यह है कि दबिश के समय कई बच्चे दीवारें कूदकर भागने की कोशिश करने लगे, क्योंकि उनके दिमाग में डर और भ्रम इस कदर भर दिया गया था कि वे सच्चाई को समझ ही नहीं पा रहे थे।
हिंदू नाम से ईसाई पहचान तक का सफर
हॉस्टल में रखे गए बच्चों की पहचान धीरे-धीरे बदल दी गई थी। जिन बच्चों के हिंदू नाम थे, उन्हें नए ईसाई नाम दिए गए। कोई जोसेफ बन चुका था, कोई योहना, तो कोई जॉय। उनका विश्वास बदलने की प्रक्रिया सुनियोजित थी। हर दिन प्रार्थनाएं कराई जाती थीं, धार्मिक किताबें पढ़ाई जाती थीं और रविवार को माता-पिता को बुलाकर विशेष सभाएं आयोजित की जाती थीं। बच्चों को यह सिखाया जाता था कि उनका पुराना धर्म गलत है और अगर वे नए धर्म को नहीं अपनाएंगे तो नरक में जलेंगे।
चेन्नई से संचालित मास्टर प्लान
अलवर पुलिस की जांच में सामने आया कि इस पूरे नेटवर्क का मास्टरमाइंड चेन्नई का धर्म गुरु सेल्वा है। इस रैकेट को बड़े पैमाने पर चेन्नई से ही फंडिंग मिल रही थी। पुलिस ने इस मामले में दो आरोपियों, सोहन सिंह और बोध अमृत सिंह, को गिरफ्तार किया है। बोध अमृत सिंह का नाम पहले भी सीकर के बड़े धर्मांतरण मामले में सामने आ चुका है। 2006 में उसने खुद धर्म परिवर्तन किया था और इसके बाद चेन्नई में खास ट्रेनिंग ली थी, जिसमें उसे बच्चों का ब्रेनवॉश करने के तरीके सिखाए गए थे। अमृत सिंह पिछले 19 सालों से धर्मांतरण से जुड़ी गतिविधियों में सक्रिय था। उसने श्रीगंगानगर, अनूपगढ़, बीकानेर, सीकर और गुजरात तक अपना नेटवर्क फैला रखा था। कुछ महीने पहले ही सीकर में हुए धर्मांतरण मामले में वह गिरफ्तार हुआ था और जमानत पर छूटने के बाद अलवर पहुंचकर इस हॉस्टल का वार्डन बन गया।
स्लीपर सेल की तरह तैयार किए जा रहे थे मासूम
इस रैकेट की सबसे खतरनाक परत तब सामने आई जब पुलिस को बैंक ट्रांजैक्शन की डिटेल्स मिलीं। गरीब परिवारों को पैसों, पढ़ाई और बेहतर जिंदगी के नाम पर लालच दिया जा रहा था, लेकिन असल में बच्चों का इस्तेमाल एक बड़े मकसद के लिए किया जा रहा था। पुलिस और विहिप के मुताबिक, बच्चों के दिमाग में हिंदू देवी-देवताओं के प्रति नफरत भरी जा रही थी। उनका ब्रेनवॉश इस तरह से किया जा रहा था कि बड़े होने पर वे विचारधारा के स्लीपर सेल के रूप में इस्तेमाल किए जा सकें। पुलिस को इस रैकेट से धार्मिक ग्रंथ, डिजिटल सामग्री, वीडियो, ऑडियो और कई अन्य साक्ष्य मिले हैं। जब्त की गई सामग्री में इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि मासूम बच्चों को संगठित तरीके से एक एजेंडे के तहत तैयार किया जा रहा था।
विधानसभा में पेश हुआ धर्मांतरण विरोधी विधेयक
धर्म परिवर्तन के इस बड़े नेटवर्क के खुलासे के बाद राजस्थान की राजनीति भी गरमा गई है। राज्य सरकार ने विधानसभा में धर्मांतरण रोकने के लिए नया विधेयक पेश कर दिया है, जिस पर मंगलवार को बहस होनी है। इस विधेयक में कड़े प्रावधान शामिल किए गए हैं, जिनमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। सरकार का दावा है कि इस कानून के लागू होने से ऐसे संगठित नेटवर्क्स पर लगाम लगेगी और मासूम बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस मामले पर बहुत देर से जागी है और ऐसे रैकेट्स लंबे समय से सक्रिय थे, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता नहीं दिखाई गई।
अनसुलझे सवाल और गहरी साजिश
यह मामला केवल एक हॉस्टल या एक शहर का नहीं है। इसकी जड़ें पूरे देश में फैले एक संगठित नेटवर्क की ओर इशारा कर रही हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने सालों से बच्चों के दिमाग से खेलकर उन्हें गुमराह करने वाला यह कारोबार किसकी शह पर चल रहा था। क्या इसके पीछे किसी अंतरराष्ट्रीय फंडिंग का हाथ है? क्या इस रैकेट के तार केवल चेन्नई तक सीमित हैं या इसके पीछे एक और भी बड़ा विदेशी नेटवर्क काम कर रहा है ? पुलिस अब चेन्नई स्थित संस्था एफएमबीपी की भूमिका की गहन जांच कर रही है, जिसके बारे में आशंका जताई जा रही है कि इसके तार कई राज्यों में फैले हुए हैं। यह मामला केवल धर्म परिवर्तन का नहीं बल्कि मासूम बचपन के भविष्य, सामाजिक संतुलन और देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।