ऊर्जा सुरक्षा बनेगी संधि का सेतु,
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की ओर बढ़ते कदम
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर चल रही बातचीत एक बार फिर रफ्तार पकड़ती दिख रही है। मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में भारतीय टीम इस हफ्ते अमेरिका में हुई मुलाकात के बाद दिल्ली लौट आई है। इस दौरान अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीयर से हुई बैठक ने दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और बातचीत को पटरी पर लाने की उम्मीद जगाई है।
अमेरिकी दबाव और रूसी तेल का पेच अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, भारत-अमेरिका के बीच सबसे जटिल मसला रूसी तेल आयात का है। अमेरिका का मानना है कि रूस से तेल की खरीद तब तक खत्म नहीं होगी जब तक भारत अपनी निर्भरता कम नहीं करता। यही कारण है कि किसी भी नए समझौते की राह में सबसे बड़ी अड़चन रूसी तेल ही माना जा रहा है। हालांकि इस बैठक को औपचारिक दौर नहीं बताया गया, लेकिन अमेरिकी पक्ष ने संकेत दिए कि समाधान टुकड़ों में नहीं बल्कि एकमुश्त ढंग से निकालने की कोशिश हो रही है। इसके तहत भारत पर नए टैरिफ की दर तय करने और तेल आयात विवाद सुलझाने की संभावना जताई जा रही है।
वीज़ा मसले को व्यापार से अलग रखा जाएगा भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए अहम माने जाने वाले एच-1बी वीज़ा मुद्दे पर भी अमेरिकी पक्ष ने स्पष्ट किया कि इसका व्यापार वार्ता से कोई लेना-देना नहीं है। अमेरिका के अनुसार, वीज़ा एक वैश्विक नीति का हिस्सा है, जिसे कानून के दायरे में अलग से देखा जाएगा। इसमें बड़े बदलाव तभी होंगे जब कानूनी ढांचे में सुधार किया जाएगा।
निवेश और ऊर्जा क्षेत्र पर फोकस बैठक के दौरान निवेश के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि यदि भारत अमेरिका में निवेश बढ़ाता है तो दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत हो सकते हैं। इसी क्रम में वाशिंगटन में मौजूद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी कई बड़े उद्योगपतियों से मुलाकात की और भारत में निवेश के लिए उन्हें आमंत्रित किया। गोयल ने बुधवार को कहा कि भारत ऊर्जा का सबसे बड़ा आयातक है और आने वाले वर्षों में ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करने में अमेरिका की भूमिका अहम होगी। उन्होंने अमेरिकी स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) तकनीक में दिलचस्पी दिखाई और संकेत दिया कि दोनों देश परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भी आगे मिलकर काम करेंगे।
भारत की ऊर्जा निर्भरता और अमेरिका की भूमिका भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उपभोक्ता है और लगभग 88 प्रतिशत आयात निर्भरता के साथ अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करता है। प्राकृतिक गैस की मांग का भी लगभग आधा हिस्सा आयात से पूरा होता है। पिछले कुछ सालों में अमेरिका भारत का पांचवां सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता और दूसरा सबसे बड़ा एलएनजी निर्यातक रहा है। फिलहाल, अमेरिकी प्रशासन ने रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदने को लेकर भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रखा है। ऐसे में भारतीय सरकारी सूत्रों का मानना है कि अगर भारत अमेरिकी ऊर्जा आयात में बढ़ोतरी करता है तो समझौते की राह आसान हो सकती है। हाल के महीनों में भारतीय कंपनियों ने अमेरिकी तेल की खरीद भी बढ़ा दी है, जिसे संकेत माना जा रहा है कि नई दिल्ली वॉशिंगटन के साथ समझौते के लिए तैयार है। भारत और अमेरिका दोनों ही इस बात को समझते हैं कि व्यापारिक मतभेदों का समाधान तभी संभव है जब ऊर्जा सुरक्षा, निवेश और रणनीतिक रिश्तों को समानांतर रूप से आगे बढ़ाया जाए। अब निगाहें इस बात पर हैं कि आने वाले महीनों में दोनों देश किस तरह समझौते को अंतिम रूप देते हैं और रूसी तेल पर खिंची तलवार का समाधान निकाल पाते हैं या नहीं।