कस्टोडियल डेथ और थानों में CCTV की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान,
राज्यों से मांगी कार्ययोजना
5 days ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम कदम उठाते हुए स्वत: संज्ञान लिया और मामले की सुनवाई शुरू कर दी। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने इसे जनहित याचिका (PIL) के रूप में स्वीकार करते हुए राज्यों से विस्तृत कार्ययोजना मांगी है। अदालत ने यह कदम एक अखबार की उस रिपोर्ट पर उठाया है जिसमें राजस्थान में हिरासत में मौतों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए थे।
राजस्थान में बढ़ती हिरासत में मौतें
सुप्रीम कोर्ट ने जिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया है, उसके मुताबिक, 2025 के सात-आठ महीनों में ही राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 मौतें हो चुकी हैं। इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि उदयपुर डिविजन में ही सात मौतें दर्ज की गई हैं। अगस्त में राजसमंद जिले के कांकरोली थाने और उदयपुर के ऋषभदेव पुलिस स्टेशन में दो सर्राफा व्यापारियों की मौत की खबर ने पूरे प्रदेश को हिला दिया था। इस मामले में आरटीआई के जरिए भी कई अहम जानकारियां सामने आई हैं, जिसने राज्य सरकार की जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
2020 का ऐतिहासिक आदेश और नियमों की अनदेखी
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें देशभर के सभी पुलिस थानों में नाइट विजन डिवाइस और ऑडियो रिकॉर्डिंग से लैस सीसीटीवी कैमरे लगाने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा था कि लॉक-अप, पूछताछ कक्ष और अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर कैमरे लगाना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, सीसीटीवी फुटेज को कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखने का भी आदेश दिया गया था, ताकि हिरासत में मौत या प्रताड़ना की स्थिति में जांच सही दिशा में हो सके।
केंद्रीय जांच एजेंसियों पर भी था आदेश
इस फैसले में सिर्फ राज्य पुलिस ही नहीं, बल्कि केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी शामिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि सीबीआई, एनआईए, ईडी, एनसीबी, डीआरआई और एसएफआईओ जैसी एजेंसियों के दफ्तरों में भी सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य होगा, जहां आरोपियों से पूछताछ की जाती है। अदालत का उद्देश्य था कि हिरासत में प्रताड़ना या मौत की स्थिति में सीसीटीवी फुटेज को सबूत के रूप में पेश किया जा सके और जिम्मेदारी तय की जा सके।
लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद देश के अधिकांश पुलिस थानों में अभी तक कैमरे नहीं लगाए गए हैं या फिर वे काम नहीं कर रहे। जब भी हिरासत में हिंसा या मौत का मामला सामने आता है, अधिकारियों की ओर से “कैमरा खराब था” या “फुटेज गायब है” जैसी दलीलें दी जाती हैं। अदालत ने इस रवैये पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि अब ऐसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
राज्यों से मांगी विस्तृत कार्ययोजना
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे इस मामले पर अपनी विस्तृत कार्ययोजना अदालत के सामने पेश करें। कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी को लेकर कोई बहाना नहीं चलेगा और बिना देरी के सभी खामियां दूर की जाएं। अदालत ने संकेत दिया है कि अगर निर्देशों का पालन नहीं हुआ तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।