गवर्नर और राज्य सरकारों के बीच संवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता…
बिल पारित करने की समय सीमा पर चर्चा के दौरान की टिप्पणी...
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच बिगड़ते संवाद पर गंभीर चिंता जताई। सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि क्या आज भी वैसी स्थिति है, जैसी संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी, जब उन्होंने दोनों शक्ति केंद्रों के बीच आपसी परामर्श और सहयोग की उम्मीद की थी। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने की, जो राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधानसभाओं से पारित बिलों को मंजूरी देने के लिए निर्धारित समयसीमा तय करने के मुद्दे पर विचार कर रही है।
संविधान पीठ की सुनवाई और मुख्य सवाल
भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। बेंच में उनके अलावा जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं। पीठ के समक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उठाए गए सवालों पर चर्चा हो रही है, जिनमें यह पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों और राष्ट्रपति पर यह बाध्यता डाल सकता है कि वे विधानसभाओं से पारित बिलों पर एक निश्चित समयसीमा में मंजूरी दें।
केंद्र की दलील और संविधान सभा की बहस
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा। उन्होंने संविधान सभा की बहस का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल का पद राजनीतिक शरण पाने वालों के लिए नहीं बनाया गया था। राज्यपाल के पास संविधान के तहत कुछ निश्चित शक्तियां और जिम्मेदारियां हैं, जिनका सम्मान होना चाहिए।
लंबित विधेयकों पर अदालत की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और अटॉर्नी जनरल से यह सवाल किया था कि आखिर विधानसभाओं से पारित बिल इतने लंबे समय तक राज्यपालों के पास क्यों लंबित रहते हैं। अदालत ने कहा कि कई विधेयक 2020 से लंबित पड़े हुए हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हो रही है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अपने 8 अप्रैल के फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर रही है, जिसमें तमिलनाडु के मामले में राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा बिलों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की गई थी। अदालत फिलहाल केवल कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी राय
मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी। राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या न्यायालय अपने आदेश के जरिए राष्ट्रपति को यह बाध्य कर सकता है कि वे विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर एक निश्चित समयसीमा में निर्णय लें या विवेकाधिकार का इस्तेमाल करें।