SIR: BLA को उठानी होगी आपत्तियां और दावे दर्ज कराने की जिम्मेदारी,
सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
बिहार में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। इस दौरान सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि चुनाव आयोग ने उसके पूर्व के निर्देशों का अनुपालन किया है और इस संबंध में हलफनामा भी दाखिल किया गया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट (BLA) को आपत्तियां और दावे दर्ज कराने की जिम्मेदारी उठानी होगी।
बीएलए की निष्क्रियता पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आश्चर्य व्यक्त किया कि राज्य की 12 राजनीतिक पार्टियों के पास करीब 1.6 लाख बीएलए मौजूद हैं, फिर भी उनकी तरफ से आपत्तियां दर्ज नहीं कराई जा रही हैं। अदालत ने कहा कि हर वोटर का अधिकार है कि वह मतदाता बनने का आवेदन करे और यदि नाम सूची से हटाया जाता है, तो आपत्ति दर्ज कराए। ऐसे में राजनीतिक दलों को अपने बीएलए को सक्रिय करना होगा ताकि वे मतदाताओं की सहायता कर सकें।
65 लाख मामलों में आपत्तियों की संभावना
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि बीएलए ऑनलाइन और व्यक्तिगत तौर पर 65 लाख हटाए गए मामलों में आपत्तियां और दावे दाखिल कर सकते हैं। आयोग के बीएलओ फिजिकल फॉर्म में बीएलए द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी की पुष्टि करेंगे और इसकी एक प्रति संबंधित बीएलए को भी देंगे। इसके साथ ही अदालत ने आदेश दिया कि बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) राजनीतिक दलों के अध्यक्ष और महासचिव को नोटिस जारी करें, ताकि वे अदालत के आदेश के अनुपालन में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर सकें।
मृतक और डुप्लीकेट वोटरों पर चुनाव आयोग की रिपोर्ट
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में 22 लाख ऐसे वोटर हैं, जो अब जीवित नहीं हैं, जबकि 7 लाख मतदाताओं के नाम दोहराए गए हैं। इस पर अदालत ने सवाल उठाया कि जब मृत मतदाताओं को हटाना संभव है, तो डुप्लीकेट वोटर सूची में क्यों बने हुए हैं। आयोग ने जवाब दिया कि यह उसका कर्तव्य है कि किसी भी व्यक्ति के पास एक से अधिक ईपीआईसी (EPIC) कार्ड न हो और अगर कोई व्यक्ति बिहार से बाहर रहकर भी ईपीआईसी रखता है, तो उसे सूची से हटाना पड़ता है।
राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर अदालत की नाराजगी
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि समस्या केवल 65 लाख मामलों तक सीमित नहीं है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर नाराजगी जताते हुए पूछा कि जब बीएलए नियुक्त कर दिए गए हैं, तो वे सक्रिय क्यों नहीं हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों और स्थानीय लोगों के बीच इतनी दूरी क्यों है और सहयोग के नाम पर चुप्पी क्यों साधी जा रही है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल आरोप लगाने से समाधान नहीं होगा, बल्कि जमीनी स्तर पर सक्रियता दिखानी होगी।
बाढ़ प्रभावित इलाकों पर प्रशांत भूषण का तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्य के कई इलाके बाढ़ प्रभावित हैं, जिसके कारण प्रभावित लोग सामने नहीं आ पा रहे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों के बीएलए को ऐसे क्षेत्रों में जाकर लोगों की सहायता करनी चाहिए। आयोग ने भी स्पष्ट किया कि सभी राजनीतिक दलों के पास बीएलए उपलब्ध हैं, जिन्हें राहत शिविरों, गांवों और पंचायतों तक पहुंचकर मतदाताओं की मदद करनी होगी।
बीएलए की भूमिका और 16 लाख आपत्तियों की संभावना
चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि यदि 1.6 लाख बीएलए में से प्रत्येक अगले 10 दिनों में कम से कम 10 आपत्तियों या दावों का सत्यापन करता है, तो लगभग 16 लाख मतदाताओं की स्थिति स्पष्ट की जा सकती है। यह प्रक्रिया न केवल हटाए गए 65 लाख लोगों के लिए महत्वपूर्ण होगी, बल्कि बीएलए को भी वास्तविक स्थिति की जानकारी मिलेगी।
नए वोटरों के नाम जोड़ने की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से यह भी पूछा कि 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नए मतदाताओं के नाम जोड़ने में बीएलए की क्या भूमिका होगी। आयोग ने बताया कि बिना उचित जांच के किसी भी मतदाता का नाम काटा नहीं जाएगा। इसके अलावा, जिनका नाम सूची में शामिल नहीं हुआ है, वे जिला निर्वाचन अधिकारी (DM) या मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) के पास अपील कर सकते हैं। अपील की अंतिम तिथि 25 सितंबर तय की गई है।