GST रिफंड क्लेम को लेकर पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला…
टैक्सपेयरों के लिये राहत की खबर…
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जो वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत रिफंड क्लेम करने की समयसीमा को लेकर टैक्सपेयर्स के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रिफंड का दावा करने की अवधि की गणना सही कर भुगतान की तारीख से की जाएगी, न कि उस तारीख से जब लेन-देन का गलत वर्गीकरण किया गया था।
रिफंड क्लेम पर कोर्ट की व्याख्या
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और शैलेन्द्र सिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) अधिनियम के तहत समयसीमा की गिनती तब शुरू होगी जब टैक्सपेयर ने सही तरीके से टैक्स जमा किया हो। मामला एक ऐसे असेसी से जुड़ा था, जिसने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए सभी जरूरी रिटर्न दाखिल किए थे और टैक्स का भुगतान भी कर दिया था।
हालांकि, एक ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि टैक्सपेयर ने कुछ लेन-देन का गलत वर्गीकरण किया था, जिसके चलते आईजीएसटी की राशि कम जमा हुई। बाद में विभाग ने टैक्सपेयर्स के रिफंड के अधिकार को तो स्वीकार किया, लेकिन समयसीमा की व्याख्या करते हुए आवेदन खारिज कर दिया।
विभाग की गलती और कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विभाग ने समयसीमा की गणना में गंभीर गलती की। बेंच ने कहा कि मूल गलत भुगतान की तारीख से समयसीमा की गणना करना अनुचित है, क्योंकि इससे टैक्सपेयर के वैध अधिकार प्रभावित होते हैं।
टैक्सपेयर्स के लिए राहत और प्रभाव
कोर्ट ने आदेश दिया कि टैक्सपेयर को न केवल भुगतान किए गए एसजीएसटी और सीजीएसटी की रिफंड मिलेगी, बल्कि रिफंड आवेदन दाखिल करने की तारीख से ब्याज का भी हक होगा। इस निर्णय ने टैक्सपेयर्स के अधिकारों को मजबूत किया है और स्पष्ट कर दिया है कि तकनीकी गलतियों या वर्गीकरण की त्रुटियों के आधार पर वैध दावों को खारिज नहीं किया जा सकता।
भविष्य के लिए मिसाल
यह फैसला जीएसटी रिफंड क्लेम्स से जुड़े आगामी मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है। कोर्ट ने सुनिश्चित किया है कि टैक्सपेयर्स के साथ कानून के तहत निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाए। यह निर्णय इलाहाबाद हाई कोर्ट और अन्य उच्च न्यायालयों के हालिया फैसलों की कड़ी में एक और बड़ा कदम है, जहां कर फाइलिंग की तकनीकी त्रुटियों के बावजूद टैक्सपेयर्स के अधिकारों की रक्षा की गई थी। पटना हाई कोर्ट का यह फैसला जीएसटी ढांचे की अखंडता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।