सार्वजनिक नहीं की जाएगी पीएम मोदी की डिग्री,
दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
धानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर चल रही लंबी कानूनी जंग पर सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। यहां अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस करीब आठ साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर एक याचिका के जवाब में प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यताओं की जानकारी सार्वजनिक करने के निर्देश दिए गए थे। यह फैसला प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर चल रहे विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। अदालत ने साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री के शैक्षणिक रिकॉर्ड का खुलासा नहीं किया जाएगा।
मामला कैसे शुरू हुआ
यह मामला उस समय शुरू हुआ था जब सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक याचिका दायर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री की जानकारी मांगी गई थी। इस पर केंद्रीय सूचना आयोग ने विश्वविद्यालय को आदेश दिया था कि वह पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करे। सीआईसी का मानना था कि प्रधानमंत्री जैसे सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यताओं को छुपाना पारदर्शिता के सिद्धांत के खिलाफ है। आयोग ने यहां तक कहा था कि जिस रजिस्टर में पीएम की डिग्री की जानकारी है, उसे “सार्वजनिक दस्तावेज” माना जाना चाहिए।
विश्वविद्यालय की दलील और कानूनी लड़ाई
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने सीआईसी के इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। डीयू की तरफ से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी कानूनी टीम ने दलील पेश की। विश्वविद्यालय का तर्क था कि इसमें केवल प्रधानमंत्री की नहीं, बल्कि हजारों अन्य छात्रों की भी डिग्रियों की जानकारी शामिल है। ऐसे में निजता का अधिकार, जनता के सूचना पाने के अधिकार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। डीयू ने कहा कि अगर यह रिकॉर्ड सार्वजनिक कर दिया जाता है, तो यह हजारों छात्रों की गोपनीयता पर प्रतिकूल असर डालेगा।
हाईकोर्ट का फैसला
सोमवार को सुनाए गए फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय की दलीलों को स्वीकार करते हुए सीआईसी के आदेश को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि प्रधानमंत्री के शैक्षणिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इससे निजता के अधिकार का हनन हो सकता है। अदालत ने यह भी माना कि प्रधानमंत्री सहित किसी भी छात्र की डिग्री की जानकारी तब तक सार्वजनिक नहीं की जा सकती जब तक कि उसका स्पष्ट कानूनी आधार न हो।
सीआईसी की दलील बनाम अदालत का दृष्टिकोण
सीआईसी का तर्क था कि प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यताओं में पारदर्शिता होनी चाहिए। आयोग ने इस जानकारी को सार्वजनिक महत्व का मामला बताया था। हालांकि, अदालत ने निजता के अधिकार को प्राथमिकता दी और कहा कि विश्वविद्यालय के पास मौजूद रजिस्टर में सिर्फ प्रधानमंत्री की नहीं, बल्कि हजारों छात्रों की डिग्रियां दर्ज हैं, इसलिए इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करना अनुचित होगा।