इस जगह पर 400 वर्षों से चल रहे मुस्लिम धार्मिक कार्यकर्मों पर लग गई थी रोक...
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
1 months ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
ग्वालियर स्थित हजरत शेख मुहम्मद गौस की दरगाह में उर्स और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। यह याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसमें दरगाह पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति से इनकार किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 1962 में इस दरगाह को संरक्षित स्मारक घोषित किया था, जिसके तहत इसे विशेष सुरक्षा और संरक्षण के दायरे में रखा गया है।
400 वर्षों से चले आ रहे हैं कार्यक्रम पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बी. वी. नगरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच के समक्ष याचिका रखी गई। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी करते हुए उनके जवाब की मांग की। अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि विशेष अनुमति याचिका के साथ-साथ अंतरिम अनुरोध पर भी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया जाए। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की उस खंडपीठ के आदेश को चुनौती दी है, जिसने उनके सिंगल जज के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता का दावा है कि वह हजरत शेख मुहम्मद गौस का कानूनी उत्तराधिकारी है। उनका कहना है कि पिछले 400 वर्षों से दरगाह में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं, लेकिन एएसआई द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित करने के बाद ऐसी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई।
हाई कोर्ट ने किया था मना हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, मार्च 2024 में याचिकाकर्ता ने एएसआई को आवेदन देकर दरगाह में उर्स आयोजन की अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया। केंद्र के वकील ने बताया कि मुहम्मद गौस की दरगाह का संरक्षण और देखरेख एएसआई के जिम्मे है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि दरगाह परिसर में तानसेन और मुहम्मद गौस की कब्र स्थित है, जो राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह एएसआई और जिला प्रशासन का कर्तव्य है कि वे इस स्मारक को अत्यंत सावधानी और सख्ती के साथ सुरक्षित रखें। हाईकोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने मार्च 2024 में एएसआई के आदेश को चुनौती नहीं दी थी, जिसमें उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए गया है, और अदालत इस संवेदनशील मुद्दे पर फैसला सुनाएगी।
महत्वपूर्ण मानी जा रही है सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह मामला धार्मिक गतिविधियों और संरक्षित स्मारकों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने का सवाल उठाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों में किसी भी गतिविधि की अनुमति और उसका नियमों के अनुसार संचालन बेहद संवेदनशील और कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है।