ट्रंप की धमकी के बाद भारत के रूस से तेल आयात में आई कमी,
क्या अमेरिकी गीदड़ भभकियों से डर गया भारत !
26 days ago Written By: आदित्य कुमार वर्मा
अमेरिका और भारत के बीच तनाव की नई स्थिति तब बनी जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से कच्चे तेल के आयात को लेकर भारत पर 25 प्रतिशत की पेनाल्टी लगाने की घोषणा कर दी। इस निर्णय के बाद भारत पर लगने वाला टैरिफ बढ़कर 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। ट्रंप का कहना है कि रूस से तेल खरीदना ही यूक्रेन युद्ध को जिंदा रखे हुए है और इसमें भारत और चीन की भूमिका सबसे अहम है। उनका मानना है कि अगर ये दोनों देश रूस से तेल खरीदना बंद कर दें तो रूस यूक्रेन पर हमले से पीछे हट जाएगा।
भारत पर ट्रंप के आरोप दरअसल ट्रंप ने सीधे शब्दों में कहा कि भारत रूस से तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से रूस की फंडिंग कर रहा है और यही वजह है कि यूक्रेन पर हमले जारी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका बार-बार भारत को चेतावनी दे चुका है लेकिन अब इस चेतावनी को पेनाल्टी के जरिए लागू किया जाएगा। इससे पहले भी ट्रंप प्रशासन लगातार यह दबाव बना रहा था कि भारत रूस से दूरी बनाए और तेल आयात को सीमित करे।
आयात घटने की रिपोर्ट वहीं इन दबावों के बीच सितंबर के महीने में भारत का रूस से तेल आयात थोड़ा कम हुआ है। ग्लोबल रियल टाइम डेटा और एनालिटिक्स प्रोवाइडर केप्लर के मुताबिक सितंबर में भारत ने रूस से औसतन 1.60 मिलियन बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल खरीदा, जो अगस्त की तुलना में करीब 5.4 प्रतिशत कम है। इसी रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि भारत की सरकारी कंपनियों ने सितंबर में औसतन 6.05 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया, जो अप्रैल से अगस्त के औसत से 32 प्रतिशत कम रहा। हालांकि यह गिरावट मामूली कही जा रही है लेकिन इसके पीछे अमेरिकी दबाव की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम और असली तस्वीर दरअसल तेल आयात का कॉन्ट्रैक्ट आमतौर पर छह से आठ हफ्ते पहले तय हो जाता है। यानी सितंबर में जितना तेल रूस से भारत पहुंचा उसकी डील जुलाई और अगस्त में ही हो चुकी थी। यही वजह है कि सितंबर के आंकड़ों से यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि भारत ने ट्रंप के दबाव में आकर तेल आयात घटाया। जुलाई में ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर भारत पर निशाना साधना शुरू किया था और अगस्त के पहले हफ्ते में पेनाल्टी लगाने का ऐलान भी कर दिया था। इसलिए असली असर अक्टूबर के आंकड़ों से ही साफ होगा।
घटते आयात की अन्य वजहें केप्लर की रिपोर्ट ने यह भी बताया कि रूस से भारत के तेल आयात में आई गिरावट के पीछे केवल अमेरिकी दबाव ही जिम्मेदार नहीं है। माल ढुलाई की लागत लगातार बढ़ रही है, जिससे रूस से आने वाला तेल महंगा हो गया है। इसके अलावा, रूस द्वारा दिए जाने वाला डिस्काउंट भी पहले के मुकाबले घटा है। साथ ही अमेरिका के दबाव के चलते संभावित जोखिम और भारतीय सरकारी कंपनियों द्वारा तेल सप्लाई में विविधता लाने की रणनीति भी एक बड़ी वजह हो सकती है।
आगे की राह वहीं अब सबकी नजरें अक्टूबर पर टिकी हैं जब रूस से तेल की नई खेप भारत पहुंचेगी। अगर उस समय आयात में बड़ी कमी देखने को मिलती है तो यह ट्रंप प्रशासन की कूटनीतिक जीत कही जाएगी। लेकिन अगर आंकड़े पहले जैसे या उससे अधिक रहे तो यह संकेत होगा कि भारत ऊर्जा सुरक्षा के अपने हितों को सर्वोपरि रखकर ही आगे बढ़ रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में अमेरिका-भारत संबंधों में और तनाव देखने को मिल सकता है।