पूर्ण रूप से चाहते हैं स्वतंत्र जीवन तो न करें विवाह,
सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
विवाह, पारिवारिक संबंध और बच्चों की परवरिश पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि शादी के बाद पति या पत्नी का अलग रहना असंभव है और यदि किसी को स्वतंत्र रूप से ही रहना है, तो उसे विवाह ही नहीं करना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक दंपति अलग रह रहा है और उनके दो छोटे बच्चे इस विवाद में पिस रहे हैं।
"विवाह का मतलब साथ रहना है, अलगाव नहीं"
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने नसीहत भरे लहजे में कहा कि विवाह दो आत्माओं और दो व्यक्तियों का एक होना है। यदि कोई विवाह करता है तो उसे अपने जीवनसाथी के साथ रहना ही होगा। बेंच ने कहा, "अगर किसी को स्वतंत्र ही रहना है, तो उसे शादी नहीं करनी चाहिए। विवाह का अर्थ है साथ आना, एक-दूसरे के सुख-दुख में भागीदार बनना, न कि अलग-अलग जीना।"अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पति-पत्नी के बीच कभी-कभी छोटी-मोटी नोकझोंक और मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अलग-अलग रहना ही समाधान है।
दंपति के विवाद में फंसे मासूम बच्चे
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस मामले में आई, जिसमें पति सिंगापुर में काम करता है और पत्नी हैदराबाद में रहती है। दोनों के दो छोटे बच्चे हैं, जो माता-पिता के अलगाव की पीड़ा झेल रहे हैं। पीठ ने बच्चों के भविष्य की चिंता जताते हुए कहा कि अगर दंपति फिर से साथ आ जाता है तो यह बच्चों के लिए सबसे बेहतर होगा। अदालत ने कहा कि मासूमों का कोई कसूर नहीं है, लेकिन उन्हें माता-पिता के अहंकार की वजह से टूटे हुए घर का दर्द झेलना पड़ रहा है।
पत्नी की दलील और आर्थिक संघर्ष
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में पेश हुई पत्नी ने अदालत को बताया कि उसके पति की दिलचस्पी सिर्फ बच्चों की कस्टडी लेने या उनसे मुलाकात करने में है, लेकिन सुलह में नहीं। पत्नी का कहना था कि अलग रहने की अवधि में उसे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला, जिसकी वजह से अकेली मां के तौर पर उसका जीवन बेहद कठिन हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट की अपील: सुलह से हल निकलेगा
पीठ ने पति-पत्नी दोनों को समझाने की कोशिश की कि बच्चों की परवरिश के लिए माता-पिता का साथ होना जरूरी है। अदालत ने कहा कि अलगाव का असर सबसे ज्यादा मासूमों पर पड़ता है और माता-पिता को अपने अहम से ऊपर उठकर बच्चों के हित में निर्णय लेना चाहिए।