राज्यपाल और CM नहीं रह सकते एक म्यान में दो तलवार…
सुप्रीम कोर्ट में ऐसा क्यों बोल गई राज्य तमिलनाडु सरकार की वकील.!
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच लंबे समय से जारी टकराव एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है। राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण दलीलें पेश कीं। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जोरदार तर्क रखते हुए कहा कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री एक ही म्यान में दो तलवार नहीं हो सकते।
सिंघवी का तर्क: राज्यपाल हस्तक्षेपक नहीं, केवल सूत्रधार
सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी दलील में सिंघवी ने कहा कि भारत के लोकतंत्र और संसदीय शासन व्यवस्था के सर्वोत्तम हित में यह आवश्यक है कि राज्य के सुशासन की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद पर ही हो। उन्होंने डॉ. बी.आर. अंबेडकर का हवाला देते हुए बताया कि राज्यपाल का कार्य केवल एक सूत्रधार के रूप में है, न कि प्रशासनिक हस्तक्षेपक के रूप में। सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व सरकार को बाधित करना या भ्रम फैलाना नहीं है। उनके अनुसार, राज्य में दो सत्ता केंद्र नहीं हो सकते, क्योंकि इससे शासन में अराजकता पैदा होगी।
अनुच्छेद 200 और राज्यपाल की सीमित भूमिका
तमिलनाडु सरकार की ओर से यह भी दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को कोई स्वतंत्र विवेकाधिकार नहीं है। राज्यपाल विधायी प्रक्रिया का हिस्सा तो हैं, लेकिन उन्हें कानून बनाने का अधिकार नहीं है। सिंघवी ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल की भूमिका केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर आधारित होनी चाहिए। उनके पास केवल तीन विकल्प हैं, विधेयक को मंजूरी देना, विधानसभा को वापस भेजना, राष्ट्रपति को भेजना लेकिन राज्यपाल की ओर से इन शक्तियों का दुरुपयोग करके खुद को "सुपर मुख्यमंत्री" बनाने की कोशिश लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच की सुनवाई
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है, जिसमें चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर शामिल हैं। यह बेंच संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है। इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति को कानून से जुड़े प्रश्नों या सार्वजनिक महत्व के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने का अधिकार है।
8 अप्रैल 2024 का फैसला और पृष्ठभूमि
सिंघवी ने अपनी दलील में 8 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा था कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों पर सहमति न देने का फैसला अवैध और मनमाना था। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर इन विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था।
तमिलनाडु में राज्यपाल बनाम सरकार का विवाद
तमिलनाडु में पिछले कुछ वर्षों से राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव गहराता चला गया है। विवाद की शुरुआत तब हुई जब राज्यपाल ने विधानसभा से पारित कई विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करनी शुरू की। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस मुद्दे पर कई बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर राज्यपाल आर.एन. रवि की कार्यशैली पर आपत्ति जताई। स्टालिन का आरोप है कि राज्यपाल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे हैं और सरकार के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे हैं।
स्टालिन की राष्ट्रपति से शिकायत और अनुच्छेद 163(1)
साल 2023 में मुख्यमंत्री स्टालिन ने राष्ट्रपति से औपचारिक शिकायत दर्ज कराते हुए आग्रह किया था कि वे राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 163(1) के अनुसार कार्य करने की सलाह दें। इस अनुच्छेद के तहत राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी अनिवार्य है। लेकिन राज्यपाल द्वारा लिए गए हालिया निर्णयों को लेकर यह बहस तेज हो गई है कि क्या राज्यपाल संवैधानिक सीमाओं का पालन कर रहे हैं या नहीं।