राजस्थान में मिला डायनासोर के ज़माने के मगरमछ का जीवाश्म,
कभी धरती पर राज करता था ये जीव, जानें पूरी डीटेल
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
राजस्थान के थार मरुस्थल की तपती रेत के नीचे 20 करोड़ साल पुराना इतिहास दफ्न था, जिसे अब वैज्ञानिकों ने उजागर कर दिया है। जैसलमेर के मेघा गांव में वैज्ञानिकों को एक ऐसा जीवाश्म मिला है जो बिल्कुल मगरमच्छ जैसा दिखता है, लेकिन यह कोई साधारण जीव नहीं बल्कि फाइटोसॉर (Phytosaur) है। एक ऐसा प्रागैतिहासिक जीव जो डायनासोर के जमाने में धरती पर राज करता था।
थार रेगिस्तान में कभी बहता था पानी
आज जहां चारों ओर रेत ही रेत है, वहां कभी नदियों की धाराएं बहा करती थीं। जैसलमेर के इस क्षेत्र में मिला फाइटोसॉर का जीवाश्म इस बात का बड़ा सबूत है कि करोड़ों साल पहले थार मरुस्थल जलीय जीवन से भरा हुआ था। भूवैज्ञानिकों के अनुसार, उस समय यहां एक तरफ नदी और दूसरी तरफ समुद्र रहा होगा।
भारत का पहला संरक्षित फाइटोसॉर जीवाश्म
जैसलमेर में मिला यह जीवाश्म भारत में खोजा गया अब तक का सबसे संरक्षित फाइटोसॉर जीवाश्म है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे पहले 2023 में बिहार और मध्यप्रदेश की सीमा पर फाइटोसॉर की एक प्रजाति का जीवाश्म मिला था, लेकिन वह इतना अच्छी स्थिति में नहीं था। यही वजह है कि जैसलमेर की यह खोज भारतीय जीवाश्म विज्ञान में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है।
डेढ़ से दो मीटर लंबा, पास में मिला अंडा
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह जीवाश्म लगभग डेढ़ से दो मीटर लंबा है। इसके पास एक अंडा भी मिला है, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि यह अंडा भी उसी फाइटोसॉर का हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह फाइटोसॉर अंडे को अपने पास दबाकर बैठा था।
जैसलमेर: ‘भारत का जुरासिक पार्क’
जैसलमेर का पश्चिमी इलाका, जिसे ‘लाठी फॉर्मेशन’ कहा जाता है, प्रागैतिहासिक काल की जीवाश्म खोजों के लिए बेहद खास है। करीब 100 किलोमीटर लंबा और 40 किलोमीटर चौड़ा यह क्षेत्र 180 मिलियन साल पहले जुरासिक युग का हिस्सा था, जहां डायनासोर और अन्य प्राचीन जीव फलते-फूलते थे। यहां की चट्टानें मीठे पानी, समुद्री जीवन और जलीय पर्यावरण का ठोस सबूत देती हैं।
कैसे हुई खोज की शुरुआत
यह जीवाश्म मेघा गांव के एक प्राचीन तालाब के पास तब मिला जब स्थानीय लोग उसकी सफाई कर रहे थे। ग्रामीणों ने इसकी तस्वीरें जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को भेजीं। इसके बाद भूवैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इनाखिया की टीम मौके पर पहुंची और जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के वरिष्ठ जीवाश्म विज्ञानी प्रो. वी. एस. परिहार की मदद से इसे फाइटोसॉर के रूप में पहचान दी गई।
मगरमच्छ जैसा दिखता था फाइटोसॉर
फाइटोसॉर आकार में मध्यम और मगरमच्छ जैसा था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह संभवतः नदी किनारे रहता था और मछलियां खाकर जीवन यापन करता था। इसके दांतों और जबड़ों की बनावट इस बात की गवाही देती है कि यह अपने समय का सबसे खतरनाक शिकारी रहा होगा।
जैसलमेर की अन्य ऐतिहासिक खोजें
जैसलमेर में यह पहली बड़ी खोज नहीं है। इससे पहले यहां थियाट गांव में हड्डियों के जीवाश्म, डायनासोर के पैरों के निशान, और 2023 में डायनासोर का एक अंडा भी मिला था। वहीं अब इस नवीनतम खोज के साथ जैसलमेर अब देश के सबसे बड़े जीवाश्म स्थलों में शामिल हो गया है।
जियो-टूरिज्म का हॉटस्पॉट बनेगा जैसलमेर
विशेषज्ञों का मानना है कि जैसलमेर में जियो-टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। यहां रूट जीवाश्म, समुद्री जीवाश्म और डायनासोर जीवाश्म मौजूद हैं, जिन्हें संरक्षित कर वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यटन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, तानोट क्षेत्र में पाई जाने वाली भूमिगत सरस्वती नदी की धाराएं भी भूगर्भीय दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं।