उपराष्ट्रपति की कुर्सी को लेकर भाजपा का मास्टर स्ट्रोक…
अब सीपी राधाकृष्णन लेंगे जगदीप धनखड़ की जगह..!
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
भारत में बतौर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कार्यकाल ने विपक्ष की नज़र में उपराष्ट्रपति पद की निष्पक्षता को धुंधला कर दिया था। उनकी आवाज़ बुलंद, तेवर टकराव वाले और हस्तक्षेप की शैली अक्सर विवादों को जन्म देती रही। यही वजह रही कि विपक्ष उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी का “तगड़ा प्रवर्तक” मानने लगा। बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी सरकार से उनकी भिड़ंतें और फिर उपराष्ट्रपति बनने के बाद राज्यसभा में उनके आक्रामक तेवर लगातार सुर्खियों में रहे। लेकिन इस बार तस्वीर बदली है। भाजपा ने नया चेहरा चुना है- सीपी राधाकृष्णन। रणनीतिक रूप से यह कदम न सिर्फ दक्षिण भारत में पार्टी की जड़ें मजबूत करने की कवायद है, बल्कि राज्यसभा के संचालन को संतुलन की ओर ले जाने का संकेत भी है। धनखड़ की जाति-क्षेत्र आधारित पहचान के विपरीत राधाकृष्णन का व्यक्तित्व सर्वसमावेशी और शांत माना जा रहा है।
दक्षिण भारत की ओर नजर
धनखड़ की नियुक्ति 2022 में जाट आंदोलन के बीच हुई थी, ताकि संदेश दिया जा सके कि जाट किसान भी राष्ट्रीय सत्ता संरचना का हिस्सा हैं। लेकिन अब राधाकृष्णन की ताजपोशी भाजपा के ओबीसी सामाजिक समीकरण और दक्षिण में विस्तार की योजनाओं का हिस्सा है। कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण भारत में पार्टी अब तक मज़बूत पकड़ नहीं बना पाई है। राधाकृष्णन, जिन्होंने तमिलनाडु में DMK के प्रखर हमलों के बीच भी संयमित तरीके से केंद्र का पक्ष रखा, इस मिशन के लिए उपयुक्त माने जा रहे हैं।
शैली में फर्क
धनखड़ एक आक्रामक वकील और राजनेता की छवि के साथ राज्यसभा पहुंचे। उनकी तीखी कानूनी दलीलें और टकराव वाली भाषा ने सहमति की संभावनाओं को कम किया। वहीं राधाकृष्णन का मिज़ाज नरम और समावेशी बताया जाता है। उन्होंने उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर दिए बयान को भी हल्के-फुल्के अंदाज में निपटाया और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से राजनीतिक संवाद बनाए रखा।
वैचारिक जुड़ाव
आपको बताते चलें कि धनखड़ का लंबे समय तक आरएसएस से कोई जुड़ाव नहीं रहा। वे व्यावहारिक राजनीतिक चयन के रूप में देखे गए। इसके उलट राधाकृष्णन 17 वर्ष की उम्र से ही जनसंघ और आरएसएस से जुड़े रहे हैं। यही वैचारिक धरातल उन्हें पार्टी और संघ परिवार का स्वाभाविक विकल्प बनाता है।
अचानक इस्तीफा और नई राह
बतादें कि धनखड़ ने इस सत्र के पहले दिन ही इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने स्वास्थ्य को कारण बताया, लेकिन घटनाक्रम यह भी उजागर करता है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव को विपक्ष के सुझाव पर बिना सरकार को भरोसे में लिए स्वीकार करना निर्णायक मोड़ साबित हुआ। नतीजतन, भाजपा ने एक ऐसे चेहरे की तलाश की जो बिना विवादों में उलझे, संसद को सुचारु ढंग से चला सके। सीपी राधाकृष्णन का चयन इसी संतुलन का प्रतीक है। विपक्ष उन्हें संभावित सर्वसम्मति उम्मीदवार मानता है, जबकि पार्टी को उनमें दक्षिण भारत का विस्तार और राष्ट्रीय समावेशिता दोनों दिखाई देती है।