भारत पर टैरिफ वार के बाद ट्रंप को अमेरिकी अदालत से बड़ा झटका,
कहा- ट्रंप को टैरिफ लगाने का कानूनी अधिकार नहीं
1 months ago
Written By: आदित्य कुमार वर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को शुक्रवार को बड़ा झटका लगा, जब यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ट्रंप के पास लगभग सभी देशों पर एकतरफा भारी-भरकम टैरिफ लगाने का कानूनी अधिकार नहीं था। हालांकि, अदालत ने फिलहाल इन टैरिफ को बरकरार रखा है, ताकि ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का समय मिल सके। इस फैसले के साथ ही ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियों को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है। अदालत ने न्यूयॉर्क की यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड के मई के उस फैसले को काफी हद तक बरकरार रखा, जिसमें ट्रंप की “लिबरेशन डे” टैरिफ पॉलिसी को असंवैधानिक करार दिया गया था।
किन टैरिफ पर केंद्रित है अदालत का फैसला
मामला अप्रैल में ट्रंप द्वारा लगभग सभी अमेरिकी व्यापारिक साझेदार देशों पर लगाए गए भारी टैरिफ से जुड़ा है। राष्ट्रपति ने 2 अप्रैल को “लिबरेशन डे” घोषित करते हुए उन देशों पर 50% तक के “रिसिप्रोकल” टैरिफ लगाए, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा है, जबकि अन्य अधिकांश देशों पर 10% का मानक टैरिफ लगाया गया। हालांकि, ट्रंप ने इन रिसिप्रोकल टैरिफ को 90 दिनों के लिए निलंबित कर दिया था, ताकि अन्य देश अमेरिका के साथ नए व्यापारिक समझौते कर सकें और अमेरिकी निर्यात पर लगी बाधाओं को कम करें। कुछ देशों जैसे ब्रिटेन, जापान और यूरोपीय संघ ने एकतरफा समझौते स्वीकार कर लिए, लेकिन जो देश मानने से इनकार करते रहे, उन्हें ट्रंप प्रशासन ने दंडित किया। इसी महीने लाओस पर 40% और अल्जीरिया पर 30% का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया, जबकि अधिकांश बेसलाइन टैरिफ बरकरार रहे।
ट्रंप का “राष्ट्रीय आपातकाल” का तर्क
ट्रंप प्रशासन ने इन टैरिफ को 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पॉवर्स एक्ट (IEEPA) के तहत सही ठहराया। राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका के दीर्घकालिक व्यापार घाटे “राष्ट्रीय आपातकाल” के समान हैं, जिससे निपटने के लिए उन्हें कांग्रेस की अनुमति के बिना कार्रवाई करने का अधिकार है। फरवरी में, ट्रंप ने इसी कानून का हवाला देते हुए कनाडा, मेक्सिको और चीन पर भी टैरिफ लगाए थे। उनका दावा था कि इन देशों से अवैध प्रवासियों और ड्रग्स की आमद ने अमेरिका की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।
अदालत ने क्यों खारिज किया ट्रंप का तर्क
ट्रंप प्रशासन ने अदालत में दलील दी थी कि राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के कार्यकाल में भी आपातकालीन स्थिति में इसी तरह के टैरिफ लगाए गए थे। हालांकि, उस समय 1917 के ट्रेडिंग विद एनिमी एक्ट के तहत राष्ट्रपति को अतिरिक्त शक्तियां प्राप्त थीं। मई में, न्यूयॉर्क की यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने ट्रंप की दलील को खारिज करते हुए कहा कि “लिबरेशन डे” टैरिफ किसी भी आपातकालीन शक्तियों के तहत राष्ट्रपति को दिए गए अधिकार से अधिक हैं। शुक्रवार के 7-4 के फैसले में फेडरल अपील्स कोर्ट ने लिखा, “ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कांग्रेस ने राष्ट्रपति को असीमित टैरिफ लगाने की शक्ति देने का इरादा किया था।” हालांकि, कुछ जजों ने असहमति जताई और कहा कि 1977 का कानून असंवैधानिक नहीं है, जिससे ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट में अपील का रास्ता खुला मिलता है।
ट्रंप प्रशासन के लिए अगला कदम
अमेरिकी न्याय विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि टैरिफ रद्द किए जाते हैं, तो सरकार को बड़ी मात्रा में रिफंड करना पड़ सकता है, जिससे अमेरिकी कोषागार को भारी नुकसान होगा। जुलाई तक टैरिफ से 159 अरब डॉलर की कमाई हुई थी, जो पिछले साल की तुलना में दोगुनी है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से ट्रंप की व्यापारिक सौदेबाजी की रणनीति कमजोर हो सकती है। एशले एकर्स, वरिष्ठ कानूनी सलाहकार, ने कहा, “यदि ये टैरिफ अस्थिर हो जाते हैं, तो विदेशी सरकारें अमेरिकी दबाव का विरोध कर सकती हैं, पूर्व समझौतों में देरी कर सकती हैं, या यहां तक कि शर्तों को फिर से तय करने की कोशिश कर सकती हैं।” ट्रंप ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी, “अगर यह फैसला बरकरार रहा, तो यह संयुक्त राज्य अमेरिका को बर्बाद कर देगा। हम इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे।”
ट्रंप के पास क्या विकल्प ?
हालांकि अदालत का फैसला ट्रंप की तत्कालीन शक्तियों को सीमित करता है, फिर भी उनके पास कुछ वैकल्पिक कानूनी रास्ते मौजूद हैं। ट्रेड एक्ट, 1974- इसके तहत ट्रंप व्यापार घाटे से निपटने के लिए टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन 15% तक और सिर्फ 150 दिनों के लिए। सेक्शन 232, ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट, 1962 — ट्रंप इसका उपयोग स्टील, एल्युमीनियम और ऑटो पर पहले भी कर चुके हैं, लेकिन इसके लिए वाणिज्य विभाग की जांच जरूरी है और राष्ट्रपति सीधे टैरिफ नहीं लगा सकते। विलियम रिन्स्च, वाणिज्य विभाग के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, ने कहा, “ट्रंप प्रशासन इस फैसले के लिए पहले से तैयार था। उनके पास ‘प्लान बी’ है, जिसके जरिए अन्य कानूनों का उपयोग कर टैरिफ को बरकरार रखने की कोशिश की जाएगी।”